रुक गया है कारवाँ  इतवार  कैसे हो गया

01-05-2020

रुक गया है कारवाँ  इतवार  कैसे हो गया

कु. सुरेश सांगवान 'सरू’ (अंक: 155, मई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

रुक गया है कारवाँ  इतवार  कैसे हो गया
देखती हूँ आदमी  लाचार  कैसे हो गया

 

क्या कभी समझा है तूने  ज़िंदगी  को ज़िंदगी
फिर अचानक  ज़िंदगी से प्यार कैसे  हो गया 

 

पागलों सा  दौड़ता फिरता रहा कुछ ढूँढ़ता
जो मिला था आज सब बेकार कैसे हो गया 

 

बेच डाले  बाग़ बगिया फूँक  डाले घोंसले
माँ धरा  से हाय तू बेज़ार कैसे हो गया 

 

इक ज़रा सी ली है करवट वक़्त की परवाज़ ने
तो अपाहिज आज ये संसार कैसे हो गया 

 

ख़ाक़ से उठकर तिरी मंज़िल वही फिर ख़ाक़ है 
इस ज़मीं पर फिर तिरा अधिकार कैसे हो गया 

 

तू ख़ुदा भी हो सकेगा  ये ग़लतफ़हमी न रख
तू ज़मीं  की धूल है फ़नकार कैसे हो गया 

 

इस तरक़्क़ी के बनाए घर में तू महफ़ूज़ था
ये तिरे ही नाश का  हथियार कैसे हो गया

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