बे-सबब मुस्कुराना नहीं चाहिए

01-05-2020

बे-सबब मुस्कुराना नहीं चाहिए

कु. सुरेश सांगवान 'सरू’ (अंक: 155, मई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

बे-सबब मुस्कुराना नहीं चाहिए
प्यार सबको जताना नहीं चाहिए


जो बताना है सच सच बता दीजिए
राज़ दिल में छुपाना नहीं चाहिए


इल्म जितना है उतना मुझे है बहुत 
अब मुझे पाठशाला नहीं चाहिए


मैंने माना हज़ारों में तुम एक हो 
फ़ालतू का दिखावा नहीं चाहिए


नेकियों का सिला तो मिले ना मिले
काम आ के गिनाना नहीं चाहिए


जो भी खाना है मिल बाँटकर खाइए
कुछ अकेले में खाना नहीं चाहिए


हाय निकले न दिल से कहीं बद्दुआ 
मुफ़्लिसों को सताना नहीं चाहिए


हम इशारा करें तो समझ जाइए
और कोई बहाना नहीं चाहिये


चाहिए जिसको साथी नये से नया 
उसके दिल में ठिकाना नहीं चाहिए


वक़्त बेवक़्त उठते रहें ज़लज़ले
दर्द दिल में दबाना नहीं चाहिए


जिसमें ख़ुद को गिराना झुकाना पड़े
वो मरासिम निभाना नहीं चाहिए

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