तड़ित रश्मियाँ

08-01-2019

तड़ित रश्मियाँ

शैलेन्द्र चौहान

पेड़ पर टँगी उदासी
पूर्णिमा के चाँद की तरह
झाँकती है स्पष्ट
 
        कोहरे में छुपी
        धूल में लिपटी
        बारिश में भीगी
        मेघ गर्जन सी
 
                तड़ित रश्मियाँ
                एकाएक छिटक जाती हैं
                   देश-प्रदेश के
                    सीले भू-भाग पर
                       कौंधती हैं स्मृतियाँ
                            बीते युगों की

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