मारे गए हैं वे
शैलेन्द्र चौहानएक
कबूतर की तरह
तड़पता - फड़फड़ाता
गिरा वह गली में
छत से ठाँय - - -
बेधती हुई सीना
थ्री-नॉट-थ्री रायफल से
निकली गोली
वह दंगई नहीं
तमाशबीन था
भरा-पूरा जिस्म, क़द्दावर काठी
आँखों में तैरते सपने लिए
चला गया, यद्यपि
नहीं जाना चाहता था वह
दो
हस्पताल आने तक
यक़ीन था उसे
नहीं मरेगा
बच जाएगा क्योंकि वह
नहीं था क़ुसूरवार
भतीजी की चिंता में परेशान
चल पड़ा था
विद्या मंदिर की तरफ़
नहीं पहुँच सका
घंटे भर लहू बहने के बाद
पहुँचाया गया हस्पताल
सांप्रदायिक नहीं था वह
फिर भी मरा
पुलिस की गोली से
तीन
उमंग और ख़ुशी से
जीवन में चाहता था
भरना चमकदार,
आकर्षक रंग
प्रियतमा सुंदर उसकी
छिड़कती रही उस पर
अपनी जान
ब्याह दी गई
सजातीय, उच्च वर्ग के
वर के साथ
सपनों को साकार
करने के लिए
कर दिए एक दिन-रात
बेफ़िक्र था इस
कार्य-व्यापार से वह
तड़पता-छटपटाता रह गया
पाकर सूचना शुभ !
सपने टूटने की
अनगिनत घटनाएँ
क़िस्से, पुराकथाएँ
गवाह है इतिहास
गवाह हैं चाँद-सितारे
गवाह हैं धर्मग्रन्थ
गवाह हैं कवि
हादसे यूँ ही
घटते रहे हैं अक्सर
निर्दोष, भोले-भाले
अव्यवहारिक
व्यक्तियों के साथ
मारे गए हैं सदैव वे
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