मुक्ति का रास्ता
शैलेन्द्र चौहान
हिंदी के प्राध्यापक रहे पंडित जी
स्वाभाविक साहित्यकार हुए
युवावस्था में क्रांतिकारी अधेड़ अवस्था में नारीवादी
फिर स्वच्छंदता के समर्थक, शिष्याप्रेमी बने
कैरियर के प्रति सजग रहने से जाति का महत्त्व पता चला
उत्तरोत्तर जातिप्रेम बढ़ता गया
समन्वयवाद का झंडा लहराने लगे
कबीर की बनिस्बत तुलसी रास आने लगे
रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा, विश्वनाथ त्रिपाठी, नित्यानंद तिवारी से लेकर
राजेश जोशी और बदरीनारायण तिवारी तक
तमाम विप्रवर भाने लगे
आजकल वेद-वेदांग पर श्रद्धामय टिप्पणियों का दौर है
योग और आध्यात्म का गृहप्रवेश हुआ है
दरवाज़े पर झीना लाल पर्दा है
आगे शुभ मुहूर्त में इसे भगवा रंग से बदलने की इच्छा है
पाखंड से मुक्ति की यह पुरज़ोर कोशिश है
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