शिशिर की एक सुबह

15-01-2024

शिशिर की एक सुबह

शैलेन्द्र चौहान (अंक: 245, जनवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

पार्क में गौरैया नहीं
नहीं सुनाई दे रही थी चिउं चिउं
गिलहरी भी नहीं थी
दौड़ती भागती पेड़ पर चढ़ती
 
वे बूढ़े भी नहीं थे
जो किसी पक्ष को भावविभोर होकर सराहते
ध्यान करने वाले भी नहीं
 
रात भर जागकर सुबह किसी बेंच पर सोये हुए
युवक, मज़दूर या ग्रामवासी भी नहीं
क्रिकेट खेलते हुए बच्चे नदारद
घूमने वाले लोग भी नहीं
 
निर्जन और शांत है पार्क
कोहरा है
सूरज भी ठिठका है धुँध में
 
कभी कभी किसी देश और समाज में
पसरा होता है ऐसा सन्नाटा
अपने अँधेरों में दुबके हुए लोग
ईश्वर को याद कर
प्रकाश की कामना करते हैं

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