गर्वोन्मत्त

15-09-2023

गर्वोन्मत्त

शैलेन्द्र चौहान (अंक: 237, सितम्बर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

वे हर दरवाज़े पर जाकर दस्तक देते
अख़बार, साहित्यिक पत्रिका, आकाशवाणी, दूरदर्शन, अकादमी, साहित्य सभागार
 
मीठी मीठी मनभावन बातें करते
सामने वाला व्यक्ति पिघल जाता
रचनाएँ माँग लेता उनसे या रिकार्डिंग के लिए बुला लेता
वे हाथोंहाथ रचनाएँ पहुँचा आते
 
अक़्सर वे यह दावा करते—
मैंने आज तक अपनी रचना छपवाने के लिए
किसी से नहीं कहा
बिन माँगे नहीं भेजी किसी को रचना
यह कहते हुए वे अपूर्व गर्व महसूसते
सुननेवाला हीनभावना से बग़लें झाँकने लगता
 
एकाधिक बार यह सुना मैंने
फिर पूछा उनसे—
तब तो मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, नंदन वग़ैरह
आपके द्वार पर खड़े रहते होंगे
आपकी रचनाएँ प्राप्त करने के लिए
वे थोड़ी देर अवाक्‌ हुए
फिर हें . . . हें . . . करने लगे!

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