मृत्यु

शैलेन्द्र चौहान (अंक: 229, मई द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

निस्पंद निर्जीव देह
मुख खुला
पुतलियाँ स्थिर
साँसें बंद
भूमि पर पड़ा सीधा
 
वह अब
न चलेगा
न बोलेगा
न कुछ खा-पी सकेगा
 
बोलता था अब तक ख़ूब
हँसता था हँसाता था गाता था सितार बजाता था
साथ चलता था
गाड़ी में घुमाता था
व्यंजन खिलाता था
 
जड़ हो गया
हो गया निश्चेष्ट
कुछ ही देर में रख दिया गया अर्थी पर
पहुँचा दिया श्मशान
हुए कुछ कर्मकांड
चिता में लगाई आग
बची सिर्फ़ राख थी
 
लौट लिए लोग
आँखें सूनी थीं
रिक्त हुआ पृथ्वी का एक अंश
सूना है मन का कोई कोना
 
कभी-कभी छाया डोलती है बोलती है
बात तौलती है
साथ होती है
ताज़ा होती हैं यादें
 
धीरे-धीरे सिमट जाएगी छाया
बिछड़ते हैं सभी
कभी न कभी
यही है जीवन चक्र
कौन किसके साथ जाता है! 

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