कवि-कारख़ाना

15-03-2024

कवि-कारख़ाना

शैलेन्द्र चौहान (अंक: 249, मार्च द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

कवि होने के लिए
कविताएँ लिखना मात्र नहीं होता काफ़ी
बताना होता है कि
मैं लिखता हूँ कविताएँ
सुनाना होता है उन्हें गाहे-बगाहे
कोई चाहे या न चाहे
बनना होता है ढीठ
पूछना होता है कैसी लगी कविताएँ
 
करना होता ज़िक्र मित्रों की कविताओं का
प्रशंसा करनी होती है उनकी
अग्रजों का लेना होता है आशीर्वाद
मठाधीशों को करना होता है प्रसन्न
बरतनी होती है चतुराई
साधना होता है आलोचकों और संपादकों को
रहना होता है सावधान द्वेष रखने वालों से
बनने लगता है आभा मंडल
आप कहलाने लगते हैं कवि

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