डॉ. नूतन पाण्डेय द्वारा टोरोंटो, कैनेडा निवासी डॉ. शैलजा सक्सेना से बातचीत
बात-चीत | डॉ. नूतन पांडेय
(यह बातचीत 2020 के प्रारंभ में हुई थी)
डॉ. नूतन पाण्डेय—
शैलजा जी सबसे पहले पाठकों को ये बताएँ कि चूँकि आपका जन्म दिल्ली में हुआ, आपकी समस्त शिक्षा-दीक्षा भारत में ही हुई, आप दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवक्ता के रूप में भी कार्य कर रही थीं? टोरोंटो आकर बसना किन परिस्थितियों के कारण हुआ और किन कारणों से आपको यहीं का होकर रह जाना पड़ा।
शैलजा सक्सेना—
जी, जन्म तो मथुरा में हुआ पर हम दिल्ली रहते थे। मथुरा में बाबा-दादी, ताऊजी-ताईजी का घर था सो आना-जाना लगा रहता था पर शिक्षा-दीक्षा यहीं दिल्ली में ही हुई। दिल्ली विश्वविद्यालय से ही पढ़ी और यहीं पढ़ा रही थी। 1991 में विवाह के बाद भी हम लोग वहीं थे पर तब तक सन् 2000 में (वाईटूके) कम्प्यूटर सिस्टम फ़ेल होने की आशंका का समय था तो 90 के दशक से ही अमरीका में कम्प्यूटर इंजीनियर्स की बहुत माँग थी,… आगे पढ़ें
डॉ. दीपक पाण्डेय—
हंसादीप जी आपका हिन्दी-लेखन के प्रति लगाव कैसे उत्पन्न हुआ और इसमें परिवार की क्या भूमिका है?
डॉ. हंसा दीप—
धन्यवाद दीपक जी, आपके साथ संवाद प्रारंभ करना मेरा सौभाग्य है। परिवार व हिन्दी-लेखन दोनों ही जीवन के दो अंग-से हैं। ऐसे स्तंभ हैं ये दोनों जो मज़बूत नींव भी देते हैं और अँधेरों में लाइट हाउस की तरह रौशनी भी देते हैं। आदिवासी बहुल क्षेत्र मेघनगर, ज़िला झाबुआ, मध्यप्रदेश में जन्म लेकर पली-बढ़ी मैं बचपन से ही आसपास के माहौल से आंदोलित होती रही। एक ओर शोषण, भूख और ग़रीबी से त्रस्त आदिवासी भील थे तो दूसरी ओर परंपराओं से जूझते, विवशताओं से लड़ते, एक ओढ़ी हुई ज़िन्दगी जीते हुए मध्यमवर्गीय परिवार थे। हर किसी का अपना संघर्ष था। रोटी-कपड़ा-मकान के लिये जूझते आसपास के लोग मन को दु:खी करते थे। मालवा की मिट्टी और मेघनगर का पानी संवेदित लेखनी को सींचते रहे। हालाँकि… आगे पढ़ें
डॉ. दीपक पाण्डेय—
आप कैनेडा में रहते हुए अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य को समृद्ध कर रही हैं। आपके कैनेडा आने का क्या प्रयोजन और परिस्थितियाँ थीं?
स्नेह ठाकुर—
यह नहीं जानती कि मैं अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य को कितना समृद्ध कर रही हूँ! हाँ, अपनी लेखनी द्वारा अनवरत बुद्धिदात्री, कल्याणकारी, वीणावादिनी, हँसवाहिनी, वागीश्वरी, माँ सरस्वती के चरण-कमलों में अपने शब्दों की पुष्पांजलि सदैव अर्पित करते रहने का प्रयास अवश्य कर रही हूँ। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे माँ सरस्वती, माँ भारती की वंदना करने का सौभाग्य बचपन से ही प्राप्त हुआ है।
रहा कैनेडा आने का प्रयोजन, तो उसे नियति का पूर्व-नियोजन ही कह सकते हैं। 1965 में विवाहोपरांत लंदन, इंग्लैंड आई। मेरे पति श्री सत्य पाल ठाकुर पहले से ही वहाँ रहते थे और बी.ओ.ए.सी. एअर लाइंस में कार्यरत थे, जिस कारण हमें अनेक देशों में भ्रमण करने का आनंद प्राप्त हुआ। ठाकुर साहब… आगे पढ़ें
डॉ. नूतन पाण्डेय—
आपका जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में हुआ, कृपया बताएँ आपका बचपन किस परिवेश में बीता, आस पास का वातावरण कैसा था?
राधेश्याम त्रिपाठी—
बहुत बहुत धन्यवाद नूतन जी। मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव जेवाँ में हुआ था। जब मैं एक या दो साल का था, मेरे पिता जी की अकाल मृत्यु हो गई थी। मेरी माता ने किस प्रकार मुझे और मेरी छोटी बहन को सँभाला और पाला, मुझे कुछ पता नहीं। इसके बाद मैं गाँव के प्राइमरी स्कूल में जाने लगा और उसके बाद दूसरे क़स्बे पुवायां में मिडिल स्कूल तक पढ़ाई की। इसके बाद वहीं के दयानन्द हाईस्कूल में ग्रेड 8 में पढ़ रहा था और वहीं पर ही मैंने अँग्रेज़ी पढ़ना शुरू किया। आठवीं कक्षा में मेरे एक मित्र ने मुझे सलाह दी कि हम लोग प्राइवेट हाईस्कूल की परीक्षा दे सकते हैं। मैंने… आगे पढ़ें
डॉ. नूतन पाण्डेय—
आपको विश्व हिन्दी सम्मान के लिए बहुत बहुत बधाई।
रत्नाकर नराले—
नूतन जी, बहुत-बहुत धन्यवाद, मैं आपके माध्यम से भारत सरकार को धन्यवाद देना चाहता हूँ कि मुझे इस सम्मान के योग्य समझा गया। मैं आपको और अपने सभी मित्रों को भी अपने प्रति शुभकामनाओं के लिए आभार व्यक्त करता हूँ। यदि आपकी अनुमति हो, तो, इस प्रश्न का उत्तर मैं संगीतमय छंदोबद्ध कविता के माध्यम से देना चाहूँगा।
कैनेडा निवासी डॉ. रत्नाकर नराले से डॉ. नूतन पाण्डेय का संवाद
जी अवश्य
रत्नाकर नराले—
मेरा मानना है कि–-
अश्वत्थस्य परं दिव्यं बीजं सूक्ष्ममणोरिवम्।
पतितं यत्रकुत्रापि महावृक्षस्य कारणम्॥
पद्मपुष्पं प्रफुल्लति पंकजं यच्च नीरजं।
माया गुणप्रभावस्य तमसोऽपि चकाश्यते॥
अतः
सूक्ष्म बीज अश्वत्थ का, जिसमें दिव्य कमाल।
गिरा जहाँ, बढ़ कर वहीं, बनता वृक्ष विशाल॥
पुष्प फूलता कमल का, कीचड़ हो या नीर।
सात्त्विक गुण के ओज से, पार होत कर तीर॥
माता ने हमको कहा, रहो कहीं… आगे पढ़ें
कैनेडा निवासी व्यंग्यकार धर्मपाल महेंद्र जैन से डॉ. दीपक पाण्डेय का संवाद
बात-चीत | डॉ. दीपक पाण्डेय
दीपक पाण्डेय—
धर्म जी आप कैनेडा में रहकर हिंदी सृजन कर रहे हैं, झाबुआ से अमेरिका और कैनेडा तक आपका हिंदी सफ़र कैसा रहा। विश्व-गाथा में प्रकाशित व्यंग्य 'गंगा गूंगी है' पढ़ा जो रोचक और वास्तविकता की बयानी करता है। हिंदी-लेखन में आपकी रुचि कैसे बनी?
धर्मपाल महेंद्र जैन—
लेखन में रुचि स्कूल के दिनों में ही विकसित होना शुरू हुई और पहली कविता जल्दी ही स्वदेश (इंदौर) के मार्च 1966 के होली विशेषांक में छप गई। मेघनगर (झाबुआ) से अमेरिका और कैनेडा तक की यात्रा की कोई पूर्वयोजना नहीं थी। जो मिला वही मुकद्दर समझ लिया की तर्ज़ पर घर से निकला तो ठौर-ठौर दूर होता गया। 1972 में दैनिक स्वदेश के संपादक मंडल में शामिल हुआ, कुछ महीने काम किया और एम.एससी. करने उज्जैन चला गया। 1974 से बैंक ऑफ़ इंडिया की उज्जैन शाखा में काम करते हुए बैंक की मुंबई से प्रकाशित गृह पत्रिका 'द… आगे पढ़ें
फीजी का हिन्दी साहित्य और संस्कृति – डॉ. सुरेश ऋतुपर्ण जी से साक्षात्कार
साक्षात्कारी– डॉ. शैलजा सक्सेना
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हिंदी भाषा और संस्कृति के वैश्विक प्रचार-प्रसार और संवर्धन में प्रवासियों भारतीयों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लगभग दो शताब्दी पूर्व विश्व के विभिन्न देशों में गिरमिटिया मज़दूरों के रूप में ले जाए गए इन म्ज़दूरों ने अपने मातृदेश को ह्रदय में बसाए रखकर अपने नए गृहदेश की समृद्धि के विकास की अपार संभावनाएँ पैदा कीं। संघर्ष के वातावरण और वहाँ पहले से विद्यमान सामाजिक संरचना में सामंजस्य स्थापित करते हुए ये भारतवंशी शिक्षाविद, साहित्यकार, प्रशासनिक अधिकारी और देश की सत्ता के महत्वपूर्ण पदाधिकारियों के रूप में विशिष्ट पहचान बनाने में समर्थ हुए और देश के सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और साहित्यिक परिदृश्य निर्माण में महत्वपूर्ण घटक बनकर उभरे। प्रोफ़ेसर सुब्रमनी की गणना फीजी के उन अग्रणी पंक्ति के इतिहाकारों, साहित्यकारों और शिक्षाविदों में होती है, जिनके पूर्वज गिरमिटिया मजदूर के रूप में लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व आये थे लेकिन आज वे अपनी कर्मठता, परिश्रम और अद्भुत जीवटता… आगे पढ़ें
(वर्ष 2015 में लिया गया उनका साक्षात्कार)
जोगिंदर सिंह कँवल फीजी में हिंदी लेखन के भीष्म पितामह थे। 88 वर्ष की आयु में चहल-पहल, महत्वाकांक्षाओं से दूर, बा की पहाड़ियों में साहित्य साधना में रत थे। जीवन के इस लंबी दौड़-धूप और यात्रा में उन्होंने अपनी मुस्कान नहीं खोयी, साहित्यकारों को सामान्य रूप से मिलने वाली सांसारिक असफलताओं के कारण उनमें कोई कटुता नहीं आई, उदासीनता और निराशा तो उनसे कोसों दूर है। बात-बात पर ठहाके अपनी कवयित्री पत्नी अमरजीत कौर के साथ वे निरंतर जीवन और भाषा के सत्यों का अन्वेषण कर रहे हैं। हिंदी के 4 उपन्यास, 3 काव्यसंग्रह, फीजी के हिंदी लेखकों की कविताओं, कहानियों और निबंधों के संग्रह, अपना कहानी संग्रह, अँग्रेज़ी में एक उपन्यास यानी वे पिछले 40 सालों से लगातार लिख रहे हैं। उनसे मिलकर मुझे हिंदी के लेखक विष्णु प्रभाकर, रामदरश मिश्र और प्रभाकर श्रोत्रिय की याद आती है। जिनकी… आगे पढ़ें
साहित्य जगत के साहित्य के वर्गीकरण के अनेक स्वरूप हैं, समकालीन, प्रगतिवाद, नारीवाद, बाल साहित्य तथा दलित साहित्य। दलित साहित्य की दिशा में श्री रामगोपाल भारतीय के इस भागीरथ प्रयास में कुछ दलितों की दशा और दिशा से जुड़े अनेक यक्ष प्रश्नों के उत्तर देश के लगभग सभी प्रान्तों से दस्तावेज़ साहित्यकारों के विचार प्राप्त करने की एक सकारात्मक कोशिश की है। इस माध्यम से दलित समस्याओं के समाधानों तक पहुँचने की एक अर्थपूर्ण कोशिश में देश भर के प्रधान लेखकों ने अपने अपने विचारों को अभिव्यक्त किया। इस साधना रूपी प्रयास के एवज़ : “दलित साहित्य के यक्ष प्रश्न” नामक संग्रह 2009 में प्रथम संस्कारण के रूप में श्री नटराज प्रकाशन द्वारा मंज़रे-आम पर आ पाया। मैं श्री रामगोपाल भारतीय जी की तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ जो मुझे भी देश के इस समस्या प्रधान विषय पर अपने विचार अभिव्यक्त करने का मौक़ा दिया...!
रामगोपाल भारतीय:… आगे पढ़ें
कहानी किसी भी फ़िल्म की रीढ़ है- तेजेन्द्र शर्मा
क़रीब दो वर्ष पहले सरसरी तौर पर हुई मुलाक़ात आज इस मोड़ पर ले आई है कि दूर-भाषीय यंत्र यानि टेलीफोन और साइबर ट्रेवल यानि नेटवर्क के माध्यम से लन्दन, यू.के में रहने वाले प्रवासी भारतीय कहानीकार, उपन्यासकार श्री तेजेंद्र शर्मा जी का साक्षात्कार लेकर आप सभी के समक्ष उपस्थित हूँ।
फ़रवरी २०१४ में दिल्ली के आज़ाद भवन में अखिल भारतीय संस्था-सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में २०१४ के साहित्यिक केलेन्डर का लोकार्पण होना था, जिसमें अन्य चार साहित्यकारों के साथ तेजेंद्र शर्मा जी भी थे और मैं (पूनम माटिया) भी। कार्यक्रम में सञ्चालन की ज़िम्मेदारी भी मेरी थी और चूँकि तेजेंद्र जी को सम्मान मिलना था तो कुछ दिन पूर्व ही उनके विषय में मैंने थोड़ी बहुत जानकारी गूगल और फ़ेसबुक से ढूँढ़ निकाली हालाँकि मेरी फ़ेसबुक मित्रसूची में वे पहले से ही थे।… आगे पढ़ें