विदेशों में रहकर नए-नए परिवेश, सरोकारों से अवगत कराने वाला साहित्यकार प्रवासी साहित्यकारों की श्रेणी में आता है। किसी रचना को अलग ख़ेमे में केवल इसलिए रख देना कि उसकी संस्कृति, परिवेश, स्थितियाँ अलग हैं, यह उचित प्रतीत नहीं होता। कुछ पुराने मानदंडों ने साहित्य के अलग-अलग खाँचे बना कर उसे मुख्य धारा से अलग कर दिया है। नए समय और नई परिस्थितियों की आवश्यकताएँ भी नई हैं। आवश्यकता है पुराने मानदंडों को तोड़ कर नया और कुछ अलग सोचा जाए। लंदन में वर्षों से साहित्य रचना कर रहे तेजेन्द्र शर्मा इस प्रवासी लेखन शब्द का समर्थन नहीं करते। उनका मानना है कि अमेरिका, कैनेडा, लंदन में लिखा जा रहा साहित्य मुख्य धारा का साहित्य है। प्रवासी जीवन पर प्रकाश डालते हुए वह कहते है कि प्रवासी जीवन का यथार्थ वापस लौटने के स्वप्न और ना लौट पाने की बाध्यता के बीच दोहरेपन की मानसिकता होती है। अतीतानुराग… आगे पढ़ें
कहानी: पगड़ी लेखक: सुमन कुमार घई   आजकल प्रवासी हिन्दी साहित्य में कहानियाँ ख़ूब लिखी जा रही हैं और वे हिन्दी कहानी की मुख्य धारा के समांतर क़दम से क़दम मिलाकर चल भी रही हैं। ये कहानियाँ बदले हुए सामाजिक परिवेश में प्रवासी भारतीयों के जीवन के विभिन्न पहलुओं को उनके परिवर्तित सोच-संस्कार के साथ प्रस्तुत करती हैं। विदेश की धरती पर बसे हुए भारतीय मूल के लोगों की बदली हुई जीवन शैली, टूटते-बिखरते भारतीय संस्कार हमें चौंकाते नहीं; क्योंकि वही वहाँ का आम जीवन है और देश-काल की माँग भी यही है। यह सब पढ़ते हुए हम इस आधुनिक यथार्थ को सहजता से स्वीकारते चले जाते हैं। लेकिन एक सकारात्मक विस्मय तो तब होता है जब हम प्रवासी हिन्दी साहित्य के सुपरिचित कथाकार सुमन घई की कहानी 'पगड़ी' से रूबरू होते हैं।  आधुनिक देहवादी सभ्यता को बहुत धीमे स्वर में, पर मुँहतोड़ जवाब देती है यह कहानी।… आगे पढ़ें
कहानी: पगड़ी  लेखक: सुमन कुमार घई    हम हर दिन कई कहानियाँ सुनते है, कई कहानियाँ पढ़ते हैं और अगर रचनाकार हैं तो कई कहानियाँ लिखते भी हैं। कुछ कहानियाँ दिल को छू जाती हैं, कुछ से हम अभिभूत हो जाते हैं, कुछ रुला देती हैं लेकिन कुछ एक-आध कहानियाँ हमें उनके बारे में लिखने के लिए विवश कर देती है। ऐसी ही एक कहानी 15 जनवरी 2022 में वातायन-यूके, हिंदी राइटरर्स गिल्ड, कैनेडा और वैश्विक हिंदी परिवार के मंच पर आयोजित ‘दो देश-दो कहानियाँ’ के अंतर्गत सुनी थी जिसने उसकी समीक्षा लिखने को मजबूर कर दिया। कहानी का नाम है ‘पगड़ी’ और लेखक हैं लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार और संपादक सुमन कुमार घई जो पिछले कई दशकों से कैनेडा की भूमि में हिंदी की अनवरत सेवा कर रहे हैं।  समुचित शीर्षक, बोधगम्य भाषा, सरल शब्दावली, संवेगों का धारा प्रवाह और सुगठित कथानक . . . सभी अत्यंत सराहनीय… आगे पढ़ें
आज से क़रीब दस ग्यारह वर्ष पहले आदरणीय ज़किया ज़ुबैरी जी की संस्था एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स ने मेरी 19 कहानियों की एक ऑडियो सीडी बनवायी थी। इस सी.डी. में मेरी कहानियों का पाठ किया टीवी एवं मंच कलाकार शैलेन्द्र गौड़ एवं रेडियो कलाकार प्रीति गौड़ ने। इस सीडी की भूमिका लिखी थी मरहूम जगदम्बा प्रसाद दीक्षित जी ने।  मेरे प्रिय मित्र एवं प्रो. राम बख़्श इन दिनों वाशिंगटन अमरीका में हैं। वहाँ अपने पौत्र के साथ रिटायर्ड जीवन का आनन्द उठा रहे हैं। मैंने उन्हें अपनी ऑडियो कहनियों का लिंक भेज दिया और वहाँ 5 मार्च से उन्होंने लगातार मेरी कहानियों को पढ़ना शुरू किया और छोटी/लम्बी प्रतिक्रियाएँ भेजना शुरू कर दिया। जैसे ही एक कहानी पढ़ते पाँच सात पंक्तियाँ फ़ेसबुक मैसेंजर पर टिप्पणी भेज देते। It is a very satisfying experience for any writer when such a senior Professor of Hindi literature finds time to read, brood… आगे पढ़ें
‘सौंदर्य’ शब्द की व्युतपत्ति संस्कृत के सुन्दर विशेषण शब्द से भाव अर्थ में ‘अञ’ प्रत्यय से जुड़कर होती है। सौंदर्य इतना सूक्ष्म भावगर्भित शब्द है कि यह अपने शुद्ध रूप में रसानुभूति से घनिष्ठतम रूप में संबद्ध है। डॉ. रामेश्वर खंडेलवाल ने ‘सौंदर्य’ शब्द के प्रति अपने विचारों को कुछ इस तरह प्रकट किया है कि, “सौंदर्य शब्द के अर्थ में वस्तुतः अनेक भाव समाविष्ट हैं जैसे - सौम्य, मनोहर, उदान्त, पेशल, रमणीय, चारू, मंजुल, रुचिर, शोभन, सुषमावान, लावण्यमान, कांत, साधु, मनोज, द्युतिवाल, छविमान, मंगलकारी और शुभ आदि।”  सौंदर्यानुभूति – “सौंदर्य की आनंदमयी अनुभूति को सौंदर्यानुभूति कहते हैं। अर्थात प्रकृति, मानव-जीवन तथा ललित कलाओं के आनंददायक गुण का नाम सौंदर्य है। सौंदर्य का स्वरूप ऐंद्रिय भी है और अतींद्रिय भी। इसका साक्षात्कार प्रायः स्थूल रूप ज्ञानेंद्रियों से, बुद्धि से तथा हृदय से माना जाता है।  किसी भी रमणीय एवं सुन्दर पदार्थ या वस्तु को देखकर नेत्र विस्मय-विमुग्ध हो… आगे पढ़ें
‘इस महानगर ने अपनी झोली में मेरे लिये न जाने क्या छुपा रखा है कि यही मेरी कर्मभूमि बन गया है।’   ब्रिटेन जैसे देश में हिंदी को सम्मान दिलवाने वाले हिंदी की पताका को गर्व से लहराते हुए, हिंदी गौरव माननीय तेजेंद्र शर्मा जी लंबे अरसे से कहानी विधा को नए आयाम प्रदान करते आ रहे हैं। लेकिन कथाकार के साथ-साथ उनके भीतर का कवि भी काव्यात्मक सौष्ठव की सुगंध साहित्य में बिखेरता रहता है। कहीं प्रवासी संवेदनाएँ विचलित करती है। अपनों की यादें रह-रह कर घेरे रहती है। मन सहज ही कह उठते हैं-      तुम्हारी याद की इंतिहा ये है कि हीरे से कांच तक सोने से पीतल तक और रद्दी से अनमोल तक हर शै से जुड़ी हैं तेरी यादें। प्रवासी अपना देश छोड़ कर दूसरे देश में जाकर बस जाता है। देश से दूर जाने के कई कारण होते हैं। आर्थिक उन्नति, विवाह… आगे पढ़ें
हिंदी के प्रवासी लेखकों में तेजेंद्र शर्मा एक प्रमुख कवि माने जाते हैं। उनकी कविता में विषय-वैविध्य के साथ साथ मानवाधिकार से जुड़ेे कुछ पहलू भी नज़र आते हैं। कहानी के अपेक्षा उन्होंने कविताएँ अपेक्षाकृत कम लिखी हैं लेकिन उन कविताओं में मानवीयता देखी जा सकती है। पंजाब में 1952 को जन्मे तेजेंद्र शर्मा आजकल प्रवासी साहित्य का चर्चित नाम है।  आज विश्व साहित्य में मानवाधिकार को लेकर काफ़ी कुछ लिखा जा रहा है, उसकी चर्चा हो रही है। इस दिशा में प्रवासी रचनाकारों में तेजेंद्र शर्मा का नाम उल्लेखनीय है। उनकी कविता में एक प्रकार की विविधता देखी जा सकती है। एक ओर तो यह कवि अपनी राष्ट्रभक्ति दिखलाता है तो दूसरी और प्रवासी भारतीय होने के नाते उस देश से भी लगाव और अपनत्व का प्रदर्शन करता है। इस प्रवासी रचनाकार ने उस देश की संस्कृति परिवेश को लेकर भी लिखा है। उनके लेखन में एक… आगे पढ़ें
अपनी सदी का बेजोड़ कहानीकार, अपनी कहानियों के अनोखे चरित्रों का विधाता, रस-सृष्टि की गंगा का भागीरथ यदि किसी को निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है तो एक ही नाम उभर कर सामने आता है और वह नाम निस्संदेह "तेजेन्द्र शर्मा" ही हो सकता है। तेजेन्द्र शर्मा का कथासंसार अद्भुत है। यह वह सागर है जिसमें मोती ही मोती भरे पड़े हैं। जिस मोती को छुओ, वही बहुमूल्य। किसे लें, किसे छोड़ें। जो कहानी उठा लो, लगता है बस इससे अच्छा और कुछ हो ही नहीं सकता। फिर अगली कोई और कहानी, फिर और, फिर और... सबका जादू एक से एक बढ़ कर सर चढ़ कर बोलता है। जो कहानी सामने आती है, लगता है बस हम इसी के हो गये।  हर कहानी का सम्मोहन पाठक के मन को ऐसा बाँध लेता है कि फिर छूटने की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती। फिर तो मन कहानी के… आगे पढ़ें