कुछ अंश
पृष्ठ- १६० से १७२
मकान किराये पर लेने की भी बहुत लम्बी कहानी है। बहुत दिनों तक, कितने महीनों तक हम किराये के मकान की खोज में भटकते रहे। किराये का मकान ढूँढ़ते समय हमें हर जगह अपनी जाति बतानी पड़ी। हम अपनी जाति वाल्मीकि बताते थे। महाराष्ट्र प्रान्त में कुछ लोग ‘वाल्मीकि’ नाम से हमारी जाति के वर्ण और जातिभेद के स्तर को नहीं समझ पाते थे, तब वे हमें दो-चार दिन के बाद आने के लिए कहते। दो-चार दिन में वे ‘वाल्मीकि रहस्य’ को जान लेते, तब दोबारा उनके पास जाने पर उनका टका सा जबाब मिलता - "मकान किराये पर नहीं देना है।"
"आप हमारे मकान में कैसे रह सकते हैं?"
"वाल्मीकि कहकर आप हमें बेवकूफ़ बना रहे थे?" कई बार इस तरह की बातों से शर्मिंदा होना पड़ा था। हम जलालखेड़ा क्षेत्र के गौलीपुरा में एक मकान देखने गये। मकान में गाय… आगे पढ़ें