पैराग्रीन बाज़ों के जोड़े ने शहर के मध्य एक ऊँची इमारत की खिड़की के बाहर कंक्रीट की शेल्फ़ को अपने अंडे देने के लिए चुना था। पता नहीं प्रकृति की गोद की चट्टान की बजाय शहर की चट्टानी इमारत उन्हें अपने बच्चे पालने के लिए क्यों अच्छी लगी थी? शहर के समाचार पत्रों में सुर्ख़ियाँ थीं, जीव वैज्ञानिकों में हलचल थी और शहर के पहले से फूले हुए मेयर और भी कुप्पा हुए जा रहे थे। उन्होंने तो कनखियों से मुस्कराते हुए वक्तव्य भी दे डाला था, “अगर मैं जार्विस स्ट्रीट की साईकिल की लेन को ख़त्म करके कारों के लिए खोल रहा हूँ तो पर्यावरण प्रेमी क्यों शोर मचाते हैं कि शहर में प्रदूषण बढ़ेगा? देखो प्रकृति तो स्वयं हमारे शहर को चुन रही है।”
शहर में उनके समर्थक, सनसनीखेज समाचार पत्र ने तो सुर्ख़ी ही दे डाली थी, “ओंटेरियो में पैराग्रीन बाज़ों की संख्या का विस्फोट—पूरे… आगे पढ़ें
शर्मा जी ने कार मेन सड़क से घरों की तरफ़ मोड़ी ही थी कि मिसेज़ शर्मा बोल उठीं, “सुनो, बड़े घर हैं—अच्छे लोग ही होंगे!”
मि. शर्मा चुप रहे, वह वैसे ही खिन्न मन से इस काम में शामिल हुए थे। अपने ख़्यालों में खोये हुए . . . वह अपने इकलौते बेटे को दोषी ठहरा रहे थे। सोच रहे थे, ‘बत्तीस से ऊपर का हो गया है . . . इस देश में पैदा होने के बाद भी अपने लिए कोई गर्ल-फ़्रेंड नहीं ढूँढ़ पाया। नालायक़! अब शादी के लिए भी हम लड़की खोजने निकले हैं।’
अलबत्ता मिसेज़ शर्मा को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी। बल्कि वह तो ख़ुश थीं कि अपनी बहू वह अपनी पसंद की लायेंगी! कह तो देती थीं कि बेटे की पसंद-नापसंद को वह भली-भाँति समझती हैं, पर बेटे और शर्मा जी को मिसेज़ शर्मा की पसंद पर संदेह तो था ही। मिसेज़… आगे पढ़ें
तारों की छाँव में विदाई का महूर्त था, सो नियमित समय पर एक बार फिर, सब सक्रिय हो गए—अंतिम चरण के रस्म-रिवाज़ निभाने के लिए। सीमा की उम्र यूँ तो इक्कीस वर्ष थी, पर शायद उसका अल्हड़ बचपन, यौवन की देहरी पर क़दम रखने के लिए एक दो बरस और माँग रहा था . . .
ख़ैर . . .
भारी लहँगे, ज़ेवर, और दिन भर की रस्मों से बोझिल तन लिए वह फूलों से सजी गाड़ी में जाकर बैठ गई-एक अनजान सफ़र की ओर, एक अनजान व्यक्ति के साथ . . .!
सब कुछ ठीक वैसे ही चल रहा था जैसे उसने सिनेमा में अक़्सर देखा था।
तभी उसने देखा उसके पिताजी भीड़ को चीरते हुए, एकदम खिड़की के पास आकर, रुआँसी आवाज़ में उसे पुचकार रहे हैं, उसकी तरफ़ हाथ बढ़ा रहे हैं . . .।
सीमा अवाक् रह गई . . .
पापा रो रहे… आगे पढ़ें
आज नेहा के ऑफ़िस का वार्षिक उत्सव था। उसने अपने आप को एक बार फिर से आईने में निहारा-गुलाबी बनारसी साड़ी और उसपर सोने मोती का हार व झुमके-वह बेहद ख़ूबसूरत लग रही थी! एक संतुष्टि भरी साँस लेकर, बड़े आत्मविश्वास के साथ उसने पर्स उठाया और तेज़ क़दमों से कमरे के बाहर निकली।
देहरी पर पहुँच कर न जाने क्यों उसके क़दम ठिठक गए, 'एक बार औरत के पाँव देहरी के पार गए, तो . . . ’ वो हड़बड़ा कर तेज़ क़दमों से चलकर गाड़ी में बैठ गई, पर सात साल पहले का मंज़र भी उसके साथ हो लिया।
बी.ए. का नतीजा हाथ मेंं लेकर वो मुस्कुराती, गुनगुनाती घर मेंं दाख़िल हुए थी। पिताजी ने गले लगाकर चाव से कहा, “अब होगा मेरी बिट्टो का एमबीए में दाख़िला और फिर किसी बड़ी कंपनी में ऊँचे पद पर . . ., ”और माँ ने बीच में ही… आगे पढ़ें
दोपहर का समय था और आनन्द ब्रेक में खाना खाने के लिये कैफ़ेटेरिया में जाने की तैयारी कर ही रहा था कि एकाएक दरवाज़े की घण्टी बजी। दरवाज़ा खोलने पर आनन्द ने अपने डैडी को सामने खड़ा पाया।
“अरे डैडी, आप अचानक कैसे? आज सुबह ही तो मैं घर से यहाँ आया हूँ। एकाएक क्या कोई बिज़नेस का काम आ पड़ा?"
“नहीं बेटे ऐसी कोई बात नहीं है। तुम्हारे यहाँ आने से पहले मैं तुम से मिल नहीं पाया था,” डैडी ने उत्तर दिया।
“अरे डैडी, आप तो बिला वजह फ़िकर करते हैं,” आनन्द ने हँसते हुए कहा। “मैं कोई छोटा सा बच्चा तो हूँ नहीं, और आप इतनी मामूली सी एक बात को लेकर परेशान हो गये हो,” इतना कह कर आनन्द हँस पड़ा।
आनन्द की बात सुनकर अनिल को कुछ अजीब सा लगा। अचानक कोई गुज़री हुई याद ताज़ा हो गई और इससे पहले कि वो… आगे पढ़ें
इन दिनों गिरमिटिया शब्द उसके मन को छलनी कर देता था। उसका वश चलता तो इसे शब्दकोश से निकालकर, समुद्र के बीचों-बीच जाकर फेंक आता। इसका कारण यह था कि कॉलेज में जैकसन सबके सामने उसकी और उसके दोस्तों की मज़ाक उड़ाने के लिए उन्हें गिरमिटिया कहा करता था। सभी अपमान का घूँट पीकर रह जाया करते।
आज जैक्सन जब अपने साथियों के साथ सामने से आता दिखाई दिया तो उसके दोस्त उसे समझाने लगे कि वह उसके मुँह ना लगे।
“क्यों रे गिरमिटिया . . . कैसे हो?”
“. . . . .”
“आज तो तू कुछ बोल ही नहीं रहा? क्या गूँगा हो गया गिरमिटिया?”
“. . . . .”
“इन साले गिरमिटियों को जब फीजी से भगाया गया तो सब ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, कनाडा चले गए जो निर्लज्ज थे, वे यहीं रह गए। यह लोग वही हैं!”
अब उसके धैर्य का बाँध टूट गया।
“सुनो जैक्सन!… आगे पढ़ें
कंधे पर लटके गमछे के एक छोर से पसीने से लथपथ शरीर को पोंछते दामू हेम्बरम, जून की उमस भरी दोपहर में, खेत किनारे स्थित बबूल के छाँव तले आकाश की ओर टकटकी लगाये कुछ यूँ बुदबुदाते हैं–
"नेस हों ओकोय बड़ाय चो कम गेये दागा,
नोवा सेरमा बोरसा चासोक् दो नित काते मुसकिल एना,
(शायद, इस साल भी वर्षा कम होगी, आज के समय में मौनसून के भरोसे खेती करना मुश्किल हो गया है)
नोवा दिसाम रे संविधान बेनाव काते आयमा सेरमा पारोम एना,
मेनखान ओकोयटाक् सोरकार हों आदिवासी लागित बेनाव कानून
ऑटोनॉमस कॉन्सील अनुसूचित क्षेत्र रे बाङ को एहोप् लेदा
आर ओना रेयाक् दोसा गे नित नोंडे दाक्, सड़क, हाटिया,
इसकुल, हासपाताल, रेयाक् चेत् बेबोसथा गे बानुक्आ
(इस देश के संविधान बने कई साल बीत गये, परन्तु, आदिवासियों के अनुसूचित क्षेत्र के लिए निर्मित कानून "ऑटोनॉमस कॉन्सील" देश के किसी भी सरकार ने लागू नहीं किया,… आगे पढ़ें
अमित जी को ग्रामीण अंचल के उस विद्यालय में स्थानांतरित हुए एक सप्ताह ही हुआ था। मध्यांतर में सभी शिक्षक "स्टाफ़ रूम"एकत्रित होकर चाय पिया करते थे। आज जब सभी शिक्षक आ गए तो अमित जी बोले, "मैं बहुत दिनों से देख रहा हूँ की अंतर सिंह जी का कप हम सबसे अलग रहता है... मुझे यह उचित नहीं लगता।"
यह सुनकर कुछ शिक्षक उनसे बहस करने लगे। बात को गंभीर होता देख कर अंतर सिंह जी बोले, "अमित जी! आप मेरा पक्ष कहाँ कहाँ लेंगे? मैं शिक्षक हूँ, लेकिन कुएँ पर मुझे दूर से पानी दिया जाता है! आप ही बताइए, मैं आप लोगों के समान ऊँचे कुल में नहीं जन्मा, तो इसमें मेरा क्या दोष है..??" उनकी आवाज़ भारी हो गई।
इतने में भृत्य चाय की केतली लेकर आ गया और टेबल पर कप जमाने लगा। अंतर सिंह जी अलमारी में रखा अपना कप उठाने को… आगे पढ़ें