जोगिन्द्र सिंह कँवल (1927-2017) फीजी के सर्वाधिक लब्धप्रतिष्ठ लेखक माने जाते हैं। फीजी के हिंदी साहित्य जगत में श्री जोगिन्द्र सिंह कँवल एक युगांतर उपस्थित कर देनेवाले रचनाकार के रूप में अवतरित हुए। जोगिन्द्र सिंह कँवल का जन्म व शिक्षण पंजाब में हुआ था। आपने 1959 में फीजी के डी.ए.वी कॉलेज में शिक्षक के रूप में पदभार संभाला व बाद में 1960 में आपने खालसा कॉलेज में अध्यापन किया व 28 वर्षों तक वहाँ के प्रधानाचार्य रहे। स्वर्गीय जोगिंद्र सिंह कँवल को फीजी का एक प्रतिष्ठित शिक्षक तथा साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में एक अमूल्य योगदानकर्ता के रूप में याद किया जाता है। आज भी कँवल जी अपनी रचनाओं के मार्फत जीवित हैं। पंजाबी और उर्दू भाषाओं का अधिकार होते हुए भी उन्होंने हिंदी में तीन काव्य संग्रह, चार उपन्यास, एक कहानी संग्रह, निबंध, आलेख, आलोचनाएँ आदि विविध विधाओं में लिखकर अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया… आगे पढ़ें
‘फीजी माँ’ प्रो. सुब्रमनी की दूसरी औपन्यासिक कृति है जिसका प्रकाशन सन् 2018 में हुआ। यह 1026 पृष्ठों का एक बृहद नायिका प्रधान उपन्यास है जिसमें एक साधारण नारी बेदमती के अस्तित्व की खोज की कथा प्रस्तुत है।
फीजी हिंदी प्रवासी भारतीयों द्वारा विकसित फीजी में हिंदी की नई भाषिक शैली है जो अवधी, भोजपुरी, फीजियन, अंग्रेजी आदि भाषाओं के मिश्रण से बनी है। गिरमिट काल के दौरान फीजी ब्रिटिश सरकार के अधीन थी और उपनिवेशक प्रभाव के कारण हिंदी की उपभाषाओं और बोलियों में अंग्रेजी, ई-तऊकई और देशज शब्दों का मिश्रण हुआ। फलस्वरूप इसकी प्रकृति और स्वरूप में परिवर्तन हुआ और यह एक धारा की ओर मुड़ने लगी जिससे यहाँ ‘फीजी हिंदी’ भाषा की उत्पत्ति हुई (जोगिन्द्र सिंह कंवल,1980, अ हंड्रेड इयर्स ऑफ़ हिंदी इन फीजी 1879-1979)। अतः हिंदी ने जैसा देश वैसा अपना वेश बनाया। इसकी साज-सज्जा तो बदली किंतु उसने अपने भाषिक संस्कार को सुरक्षित… आगे पढ़ें
शब्द-संसार का सार्थक प्रयास है ‘मैं कवि हूँ इस देश का’ काव्य-संग्रह
पुस्तक चर्चा | मनोज कुमार ’मनोज’
कवि होना न तो साधारण बात है, न ही असाधारण अपितु यह तो सौभाग्य का विषय है। वह उस देश का हो या इस देश का हो, वह इस माटी का हो या उस मिट्टी का हो। उसका जन्म कहाँ हुआ, वह कहाँ रहता है...? और आज कहाँ बस गया है? वह किसकी उपासना करता है या नहीं भी करता। उसका विश्वास हमसे अलग है या वो हमारा विश्वासी या हाम्मी है। यहाँ यही सबसे ख़ास और प्रमुख है कि श्रद्धेय तेजेन्द्र शर्मा का कवि होना ही बड़ी बात है और उनकी शब्द प्रसवनी लेखनी ने जो शब्द प्रसूत किए हैं उसे नाम दिया गया है ’मैं कवि हूँ इस देश का’।
कवि, जो शेष रहता है, जिसे सब छोड़ देते हैं या जो उपेक्षित कर दिया जाता है और विशेष, जो श्रेष्ठ होता है, जिसे सुंदर कहते हैं, वह भी उसके आकर्षण का केन्द्र बनता है परन्तु… आगे पढ़ें