बहुत ख़ूबसूरत दिन है, बारिश होकर निपटी है। धरती गीली-गीली दिख रही है, मानों जैसे नहाकर आई हो। मैं कभी खिड़की से बाहर पेड़ों और पक्षियों को देखती हूँ, तो कभी अपने ही ख़्यालों के समुंदर में गोते लगाने लग जाती हूँ। बैठे-बैठे ख़्याल आया कि क्यूँ ना कुछ ख़्यालों को शब्दों में ढाल कर काग़ज़ पे उतारूँ और फिर शुरू कर दिया मैंने यही सिलसिला।
इसको लिखने में मुझे कोई शब्दावली की पुस्तक नहीं देखनी पढ़ रही है, ना ही कोई उपन्यास पढ़ना पढ़ रहा है, बस मेरे मन में जो विचार आ रहे हैं उनको मैं शब्दों में ढाल रही हूँ।
लिख रही हूँ और विचार कर रही हूँ एक बहुत अनमोल तत्त्व की, जो इस धरा पर हर जगह है पर शायद काल के साथ, मशीनों और अत्याधुनिक तकनीकों में खो गया है:“प्यार” जी! जिसे हम और कई नाम से भी जानते हैं—प्रेम, स्नेह या… आगे पढ़ें
इतवार की ख़ूबसूरत सुबह थी, सूरज ने पलकें खोलीं और एक नयी दिन की शुरूआत हो गयी। और इस दिन के साथ शुरू हुआ यादों का सिलसिला। खट्टी-मीठी यादें। समय के साथ साथ हम ढल तो जाते हैं, पर एक चीज़ है जो कभी नहीं बदलती वे हैं—यादें। प्रकृति का नियम है की जैसे जैसे उम्र बढ़ेगी हम में बदलाव आएगा, आना भी चाहिये तभी तो हम मनुष्य रुपी जीवन का भरपूर आनंद हर मायने में उठा सकते हैं। इन्हीं कुछ विचारों के साथ आज मैंने एक बार और क़लम उठा ली।
अपने देश से कोसों दूर बैठे कई बातें, कई छायाएँ अनायास ही आँखों के सामने आ जाती हैं, जैसे नानी का घर, दादी की सीख, संक्राति की पतंगबाज़ी, पोष-बड़ों का आनंद, धुलैंडी (होली) के रंग इत्यादि। वाह! क़ुदरत तेरा भी जवाब नहीं, मस्तिष्क में समाये, अपनों के साथ बिताए हज़ारों पल किस तरह एक चलचित्र के… आगे पढ़ें