सोचते हुये बहुत समय हो गया कि बाबूजी के जीवन के विषय में कुछ लिखूँ परन्तु कहाँ से आरंभ करूँ और क्या-क्या बताऊँ उनके बारे में, यह समझ ही नहीं पा रही थी।
अनेक महान आत्माओं की कथायें लिखी गईं हैं व हम सभी उनसे कुछ न कुछ सीखते भी हैं; परन्तु वे आत्माएँ हमारे निजी जीवन से दूर होती हैं। हम उन्हें दूसरी दृष्टि से ही देखते हैं।
मेरे बाबूजी, मेरे श्वसुर, तो मेरे विवाह के बाद पास ही रहे, यह मेरा कितना बड़ा सौभाग्य रहा, शब्दों में बताना कठिन है और लिखना तो और भी कठिन। फिर भी प्रयास तो करूँगी।
मेरे बाबूजी जिनका पूरा नाम था, डॉ. मुकुंद स्वरूप वर्मा, ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय १९२३ में, लखनऊ से मेडिकल पास करके जायन किया, जहाँ वे महामना मदन मोहन मालवीय जी के सानिध्य में व उनके बाद उनके पुत्र गोविंद मालवीय के साथ रहे व काम… आगे पढ़ें
प्रत्येक वर्ष मातॄदिवस के अवसर पर मेरे स्मृतिपटल पर मेरी स्नेहमयी माता के साथ-साथ एक और चेहरा अंकित होता है और वह है मेरी दादी का, जो मेरी माँ से सर्वथा भिन्न है। रंग-रूप में अत्यन्त साधारण होते हुए भी वे एक असाधारण व्यक्तित्व की स्वामिनी थी।
श्यामवर्ण, घने-घुँघराले बाल, अत्यन्त साधारण नयन-नक़्श और उनके मुख पर कभी-कभार ही खिलती मुस्कुराहट–ऐसी थी हमारी दादी। वे जब हँसती तो हम बच्चे अवाक् होकर उन्हें देखने लगते कि आज सूरज पश्चिम से कैसे निकल आया? उसके पश्चात हम बच्चे जहाँ सतर्कता त्याग, सहजता से किलकना व शोर मचाना आरम्भ करते, वहीं वे धीर-गम्भीर स्वर में अपनी गर्जना आरम्भ कर देतीं। हम बच्चे उनके कमरे से दूर भागने का बहाना ढूँढ़ने लगते। उन बच्चों में होते–हम दो बहनें, एक भाई और हमारी बुआ के दो बेटे और दो बेटियाँ। अपनी दादी से हम डरते तो थे पर उनसे दूर रहना भी… आगे पढ़ें
अपना घर बार छोड़ कर किसी विदेश में आकर बसने का दुख वही जानता है जिसने इसे भुगता हो। 60 का दशक ऐसा समय था जब बहुत से भारतीयों ने अपना बसेरा ब्रिटेन में बसाया। इसमें बहुत से शिक्षक थे और कुछ कहानियाँ और कविताएँ भी लिखते थे। देश छूटने की कसक वह अपने लेखन द्वारा निकालने लगे। कहानियाँ अधिकतर नॉस्टेल्जिया पर आधारित होतीं जो उन्हीं लेखकों तक ही सीमित रह जातीं। बरसों यहाँ रहते हुए और इतना सब लिखते हुए भी किसी का एक भी कहानी संग्रह सामने नहीं आया था।
समय एक जैसा नहीं रहता। 90 के दशक में भारत के प्रसिद्ध कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा ब्रिटेन में आए। वह दूसरे लोगों के समान किसी मजबूरी में यहाँ नहीं आए थे। भारत में उन्होंने बहुत अच्छे दिन देखे थे। किन्हीं निजी कारणों से भारत में अपनी एयरलाइन की नौकरी छोड़ कर वह ब्रिटेन में बसने आ गए।… आगे पढ़ें