“कही-अनकही” शीर्षक अपने आप में बहुत कुछ कहता है; कहने के लिये कुछ न रह जाना, व्यक्ति के चुक जाने की निशानी है, कुछ न कुछ कहने के लिये छूट जाना ही जीवन का परिचायक है। आशा बर्मन की कवितायों में हमें यही जीवन्तता देखने को मिलती है।
यह आशा बर्मन का पहला काव्य संग्रह है। पहला काव्य संग्रह सदा ही भावनाओं का वह पुलंदा होता है जो छ्पाई से पहले, कवि के मन और डायरी में संगृहीत होता चलता है। पहले काव्य संग्रह में कविताओं की छँटाई, कटाई से लेकर छपाई और विमोचन, बिक्री और आलोचना के जगत से कवि अनजान होता है। इस समय कवि के मन में प्रथम प्रेम की-सी झिझक भरी लचकन होती है कि पाठक इस पुस्तक को कैसे लेंगे, एक पुलक भरी आशंका होती है कि सालों बाद मन की पोटली को एक सुन्दर कलेवर मिला है तो वह कैसी लगेगी, एक… आगे पढ़ें
सरस्वती माता के वरद पुत्र श्री आदेश जी टोरोंटो के हिन्दी साहित्य परिवार के एक अभिन्न अंग थे।
वे गत 35 वर्षों से यहाँ के स्थानीय कवियों के प्रेरणास्रोत रहे। भारतीय संस्कृति, दर्शन, साहित्य, संगीत, कला, हिंदी भाषा एवं मानव सेवा के विभिन्न कार्यों में आदेश जी सदैव कार्यरत रहे। इनके निर्वाण, शकुंतला आदि आठ महाकाव्य, अनेक खंडकाव्य तथा कई काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। स्वयं एक प्रतिष्ठित कवि होते हुए भी उन्होंने सदैव सभी नवोदित कवियों को कवि सम्मेलनों में आमंत्रित किया, धैर्यपूर्वक उन्हें सुना, सराहा तथा प्रोत्साहित किया। इसके लिये हम उनके प्रति सदा कृतज्ञ रहेंगे।
मेरा सौभाग्य है कि श्री आदेश जी ने स्वयं मुझे अपना काव्य-संग्रह ’निर्वेद’ पढ़ने के लिये दिया और इसकी समीक्षा करने के लिए कहा। इसमें अधिकतर भजन हैं, जिनमें जीवन की निस्सारता, क्षणभंगुरता के साथ-साथ ईश्वरप्रेम तथा सद्गुरू के महत्त्व की चर्चा है। ’निर्वेद’ को रचनाकार ने ‘सात लघु… आगे पढ़ें
समीक्षित पुस्तक: प्रवासी कथाकार शृंखला – शैलजा सक्सेना (कहानी संकलन)
लेखक: डॉ. शैलजा सक्सेना
प्रकाशक: प्रलेक प्रकाशन प्रा. लि.
पृष्ठ संख्या: 176
ISBN-10 : 9390500206
ISBN-13 : 978-9390500208
मूल्य: ₹299.00 (हार्डकवर) / ₹198.00 (पेपरबैक)
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डॉ. शैलजा सक्सेना का प्रवासी साहित्यकारों में विशिष्ट स्थान है। अपनी साहित्यिक रचनाओं और साहित्यिक गतिविधियों से इन्होंने प्रवासी साहित्य को समृद्ध किया है। शैलजा सक्सेना का व्यक्तित्व बहुआयामी है। उनका लेखन भी बहुआयामी है। उन्होंने कविता, कहानी, लेख, संस्मरण सभी विधाओं में लिखा है। लेबनान की एक रात उनका पहला कहानी संग्रह है। इससे पहले इनका कविता संग्रह क्या तुमको भी ऐसा लगा प्रकाशित हो चुका है। इस संग्रह में तेरह कहानियाँ-आग, उसका जाना, एक था स्मिथ, दाल और पास्टा, दो बिस्तर अस्पताल में, निर्णय, नीला की डायरी, पहचान की एक शाम, लेबनान की वो रात, वह तैयार है, शार्त्र, अंदर मदर-हैं।
शैलजा जी के… आगे पढ़ें
सम्भावनाओं की धरती: कैनेडा गद्य संकलन
समीक्षक: डॉ. अरुणा अजितसरिया एम बी ई
प्रकाशक: पुस्तक बाज़ार.कॉम
सम्पादक मंडल
मुख्य सम्पादक: डॉ. शैलजा सक्सेना, सुमन कुमार घई
सह सम्पादक: आशा बर्मन, कृष्णा वर्मा
ग्राफ़िक्स: पूनम चंद्रा ‘मनु’
साहित्य की इंद्रदनुषी विधाओं में कैनेडा के स्थापित और उदीयमान रचनाकारों की विविध रचनाओं को संकलित करके हिंदी की वरिष्ठ लेखिका, डॉ. शैलजा सक्सेना और सुमन कुमार घई जी ने कैनेडा निवासी प्रवासी हिंदी लेखकों की रचनाओं का महोत्सव मनाया है। भारत के अलग-अलग प्रांतों में जन्मे और शिक्षित हुए ये लेखक कैनेडा की धरती में बस कर विभिन्न व्यवसायों में सक्रिय हैं। उनके कार्यक्षेत्र और जीवन के अनुभव एक दूसरे से भिन्न हैं, पर उनमें एक सामान्य विशेषता है जो उन्हें एकसूत्र में बाँधती है और वह है हिंदी के प्रति उनका अगाध प्रेम! उनका लेखन उनकी उस मानसिकता को इंगित करता है कि वे भारत से जितनी दूर हैं दर्पण… आगे पढ़ें
पुस्तक: कुछ सम कुछ विषम (कविता संग्रह)
लेखक: धर्मपाल महेन्द्र जैन
प्रकाशक: आईसेक्ट पब्लिकेशन, महाराणा प्रताप नगर, भोपाल
मूल्य: ₹200, पृष्ठ–152, वर्ष–2021
सामजिक संचेतना के जागरूक कवि धर्मपाल महेंद्र जैन के नए काव्य संकलन (कुछ सम कुछ विषम) को पढ़ते समय याद आए कुबेरनाथ राय: ‘हमें सदैव यह मान कर चलना है कि मनुष्य की सार्थकता उसकी देह में नहीं, चित्त में है। उसके चित्त-गुण को, उसकी सोचने-समझने और अनुभव करने की क्षमता को विस्तीर्ण करते चलना ही मानविकी के शास्त्रों का, विशेषतः साहित्य का मूल धर्म है’।
कुबेरनाथ राय की बात संकलन में संगृहीत (इक्यानवे) कविताओं में शब्दशः परिलक्षित होती है। इसलिए कि ये आज के आदमी की अस्मिता से जुड़ी हैं। फिर वह सुबकियाँ भरती स्त्री हो, या खंडित देह जीता पुरुष। आदमी के देह में सिमट जाने का अर्थ है कि वह अन्य जीव-जंतुओं से श्रेष्ठ नहीं है। भागवतकार वेदव्यास कहते हैं ‘यहाँ मनुष्य… आगे पढ़ें
समीक्षित पुस्तक: क्या तुमको भी ऐसा लगा? (काव्य संकलन)
लेखक: शैलजा सक्सेना
वर्ष: प्रथम संस्करण २०१४
प्रकाशक: अयन प्रकाशन, नई दिल्ली
पृष्ठ संख्या:
मूल्य:
लगभग बीस बरस पहले भारत से विदेश प्रवास कर गई कवयित्री शैलजा को जो सम्बन्ध एक बार फिर हिन्दुस्तान की ज़मीन और हिंदी की दुनिया में खींच लाया वह है कविता से उनका सम्बन्ध। पिछले तीस वर्षों के अंतराल में, समय-समय पर सिरजी जाती कविताएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपती रही हैं। इन रचनाओं का पहला संकलन हाल ही में ‘क्या तुमको भी ऐसा लगा?’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। इन कविताओं की भावप्रवणता पाठक को एक अलग स्तर पर प्रभावित करती है। सर्दियों में पत्तों से छनकर आती धूप जिस तरह रोशनी और गरमाहट देती है शैलजा की ये कविताएँ विचारधारा और विमर्शों की टकराहट से लैस आज की कविता के माहौल में अपनी कोमल संवेदनशीलता से उसी तरह का मासूम अनुभव बाँटती हैं।
इन… आगे पढ़ें
19वीं सदी के अंत व 20वीं सदी के आरंभ में पूर्वी उत्तर प्रदेश के आचंलिक क्षेत्रों से रोजी-रोटी की तलाश में अनुबंधित श्रमिक के तौर पर सात समुंदर पार फीजी गए भारतीय मूल के लोगों ने आरंभ में अत्यधिक कष्ट झेले किंतु उन्होंने फीजी को सजाया, संवारा और संपन्न किया आज इन गिरमिटियों की तीसरी-चौथी पीढ़ी फीजी देश में में सुप्रतिष्ठित है, सुशिक्षित है और संपन्न है। विदेशी भूमि पर बहुजातीय देश में विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं के बीच भारतीय मूल के इन लोगों ने अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित रखा है। भारतीय मूल के लोग वहाँ जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग है और हिंदी को दो रूपों में बोलते हैं पहला रूप आम बोलचाल की हिंदी का है और भारतीय उसका मातृभाषा के रूप में बड़ी सहजता से परिवार के साथ प्रयोग करते हैं यह वह रूप है जिसका विकास फीजी के भारतीयों के मध्य… आगे पढ़ें
समीक्ष्य पुस्तक : पानी केरा बुदबुदा (उपन्यास)
लेखिका : सुषम बेदी
प्रकाशक : किताब घर
वर्ष 2017
पृष्ठ : 167, पेपरबैक
मूल्य : ₹ 300.00
‘पानी केरा बुदबुदा’ 2017 में किताबघर, दिल्ली से प्रकाशित सुषम बेदी का नौवाँ उपन्यास है। इससे पहले उनके ‘हवन’, ‘लौटना’, ‘इतर’, ‘कतरा-दर-कतरा’, ‘नवाभूम की प्रेमकथा’, मोरचे’, ‘मैंने नाता तोड़ा’, ’गाथा अमरबेल की’ हिन्दी साहित्य को मिल चुके हैं। ‘पानी केरा बुदबुदा’ में कुल 38 परिच्छेद हैं। उपन्यास नायिका प्रधान है। यूँ तो आदि से अंत तक नायिका पिया का ही जीवन संघर्ष, द्वंद्व, चिंतन, समझौते, छटपटाहटें हैं, लेकिन उसका जीवन निशांत, अनुराग, दामोदर, रोहण से जुड़ा है। इसी कारण 12 परिच्छेदों के शीर्षक नायिका पिया के नाम पर, सात के पिया के पुरुष मित्रों निशांत और अनुराग के नाम पर, दो के पति दामोदर के नाम पर, पाँच के बेटे रोहण के नाम पर हैं और पाँच परिच्छेद अनाम हैं।
पिया, निशांत, अनुराग… आगे पढ़ें
रिश्तों की परिधि में स्थायीत्व की तलाश करती नारी का यथार्थ : पानी केरा बुदबुदा
पुस्तक समीक्षा | डॉ. श्यामसुंदर पाण्डेय
समीक्ष्य पुस्तक : पानी केरा बुदबुदा
लेखिका : सुषम बेदी
सजिल्द : 167 पृष्ठ
प्रकाशक : किताबघर प्रकाशन
संस्करण वर्ष : 2017
आईएसबीएन : 9382114289
सुषम बेदी वर्तमान की उन कथाकारों में प्रमुख हैं जिन्होंने भारत और पश्चिमी परिवेश को बड़े नज़दीक से देखा है। यही कारण है कि उनकी कथाभूमि के केंद्र में भी दोनों संस्कृतियाँ रहीं हैं। अपने सद्यः प्रकाशित उपन्यास ‘पानी केरा बुदबुदा’ के माध्यम से सुषम जी भारतीय और अमेरिकी परिवेश से गुज़रती एक उच्च शिक्षित एवं आत्मनिर्भर नारी के मानवीय रिश्तों की परिधि में स्थायीत्व की तलाश कर रही हैं। यह उपन्यास इस विचारधारा को सीधे-सीधे ख़ारिज करता है कि उच्च शिक्षा और आर्थिक सम्पन्नता ही व्यक्ति के जीवन में शांति एवं सुख के आधार होते हैं। उपन्यास की नायिका पिया जिस मानसिक त्रासदी और अस्थिरता के दौर से गुज़र रही है वह पूरी दुनिया की उन लाखों महिलाओं की त्रासदी है… आगे पढ़ें
जीवन-स्थितियों की गाथाकार सुषम बेदी: विशेष संदर्भ ’सड़क की लय और अन्य कहानियाँ’
पुस्तक समीक्षा | डॉ. शैलजा सक्सेना
समीक्ष्य पुस्तक : सड़क की लय
लेखक : सुषम बेदी
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित
संस्करण वर्ष : 2017
पृष्ठ संख्या :168
मूल्य: ₹300
मुखपृष्ठ : सजिल्द
आईएसबीएन :9789384344689
सुषम बेदी जी से मेरी जान-पहचान पत्राचार के माध्यम से हुई। 1995 में अपनी पीएच.डी. पूरी करके, मैं डी.लिट. के लिए एक अध्ययन करना चाह रही थी, विषय लिया था, ’उत्तरी अमेरिका में हिंदी के अध्ययन और अध्यापन की समस्याएँ’। कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, अमरीका में रहते हुए उस समय एक लंबा प्रश्न पत्र सा बनाकर मैंने अमेरिका के अनेक विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाने वाले सभी प्राध्यापकों को भेजा था। उन प्राध्यापकों के नाम और पते जुटाने में बहुत मेहनत की थी। 1994 में इंटरनेट ने इतनी तरक़्क़ी नहीं की थी कि सारी सूचनाएँ, आज की तरह आसानी से उपलब्ध हो सकती अतः अनेक माध्यमों से अनेक प्राध्यापकों के पतों को जुटाकर मैंने चिट्ठियाँ भेजी थीं। लगभग 25 चिट्ठियों में… आगे पढ़ें