धूप इतनी भी नहीं है कि पिघल जाएँगे
डॉ. शोभा श्रीवास्तव2122 2122 1212 22
धूप इतनी भी नहीं है कि पिघल जाएँगे।
राह मुश्किल ही सही हम तो निकल जाएँगे।
मरमरी साया तेरा दीद ए खुलूस सनम,
थाम लेना तुम अग़र पाँव फिसल जाएँगे।
दिल के काग़ज़ पे तेरा नाम लिखने वाला था,
क्या ख़बर थी, मेरे मज़मून बदल जाएँगे।
डाल दो चाहे सफ़ीने को तेज़ लहरों में,
आशना हैं जो हुनर से, वो सँभल जाएँगे।
मेरे हिस्से का कंवल तुम न छीन पाओगे
रीते हाथों हम नहीं लेके कंवल जाएँगे।
कठिन राहों में बस बेचारगी का आलम है
साथ कुछ दूर चलो तुम तो बहल जाएँगे।
है मुनादी इन दिनों ख़ामुश रहना 'शोभा'
सच कहोगे तुम अगर पत्थर उछल जाएँगे।
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