बूढ़ी गंडक के तट पर 

15-08-2024

बूढ़ी गंडक के तट पर 

डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरी (अंक: 259, अगस्त द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

 बूढ़ी गंडक के तट पर था मेरा गाँव
 वहीं पास मल्लाहों की नाव 
 हमें नहीं ज़रूरत थी
 किसी उद्यान, रेस्तरां मॉल या रेस्टोरेंट की 
 उस नदी के किनारे 
 दोस्तों के साथ बैठना 
 चावल और चना के भुने खाना 
 और हर तरफ़ फैले हुए पानी को देखना
 उसकी तरंगों को आत्मसात करना 
 हमें सबसे ज़्यादा अच्छा लगता था
 कभी अकेले भी गया 
 तो वो नदी हमारी दोस्त बन जाती थी 
 कभी उछलती कभी गाती थी 
 कभी पास आती
 और कभी लहरों के साथ भाग जाती थी . . .। 

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