तुम्हारे होने से
डॉ. वीणा विज ’उदित’
धरा ने कार पार्किंग लॉट में खड़ी की और दौड़ती हुई साउथ वेस्ट एयरलाइंस के कॉरिडोर में पहुँची तभी उसके फोन की घंटी बजी। वह समझ गई मान्या की फ़्लाइट लैंड कर गई है।
“मामा हम लैंड कर गए हैं!”
“ओके मैं एयरपोर्ट पर ही हूँ,” कहकर उसने फोन बंद कर दिया और लगी इंतज़ार करने आउटर सर्किल पर।
बयालिस की उम्र में गोरी चिट्टी धरा तीस वर्ष की युवती लगती थी। जींस और टॉप पहने छरहरी काया व स्मोकी बाल टेढ़ी माँग में कंधे से थोड़ा नीचे तक खुली लटों में बिखरे रहते थे उसके गौर वर्ण और गुलाबी चेहरे को और ख़ूबसूरत निखार देते थे। हर वक़्त मुस्कुराता चेहरा जिसकी आभा उसकी आँखों की चमक बढ़ा देती थी, जो उसके सौंदर्य को दुगना कर देते थे। कानों में एक-एक मोती के स्टड व एक डायमंड की रिंग। पास से गुज़रता आदमी उसे पलट कर फिर देखता था ऐसा उसके साथ प्रायः घटता रहता था। वह स्वभाव-वश अपने चेहरे पर सदा एक मीठी मुस्कान ओढ़े ही रहती थी।
तभी देखती है कि सामने से बहुत स्मार्ट उसकी बिटिया मान्या ग्रे पैंट कोट सूट में आ रही है साथ में मिनी फ़्रॉक में छोटे क़द की ब्लैक ब्यूटी भी आ रही है। मान्या की हाइट अपनी माँ जितनी पाँच फ़ुट चार इंच थी, और वह भी चेहरे पर वही चिर स्मित मुस्कान ओढ़े हुए थी।
“मामा यह मार्था है! जिसके बारे में मैं आपको बता रही थी फोन में!”
“हेलो मार्था वेलकम!”
“हेलो आंटी यू लुक सो यंग!”
तीनों बातें करती हुई ट्रॉली लेकर पार्किंग लौट में पहुँच गईं और कार में बैठ गई। घंटे भर में वह घर पहुँच गई थीं। मार्था बात करने में चुलबुली व अपनत्व लिए हुई थी। वह मान्या के साथ सैन फ्रांसिसको घूमने आ गई थी। उनकी लॉस एंजेलिस में ऑफ़िस मीटिंग थी वह फिनिक्स से वहाँ आई थी। धरा को यह संतोष था कि उसकी बेटी उसके साथ प्रसन्न है। नहीं तो वह हँसना ही भूल गई थी, जब से उसके पापा उनको छोड़ सिधार गए थे। दो-तीन दिनों तक मान्या और मार्था घूमती रहीं। मान्या उसे वाइनरीज़ (अंगूर के बागान) दिखाने ले गई थी। आर्ट पैलेस, म्यूज़ियम, गोल्डन गेट ब्रिज, हाफ़ मून बीच—यह सब दिखा कर वह उसे बाहर खाना भी खिलाती रही। फिर भी धरा ने टोटिया (मैदे की रोटी) में पनीर भुर्जी डालकर रोल बनाकर उसे खिलाए जिसकी वह क़ायल हो गई थी। राजमा चावल भी उसे बहुत पसंद आए थे। हम भारतीयों की आदत है कि हम विदेशियों को अपना खाना अवश्य खिलाते हैं। शायद भारतीय खाने की प्रशंसा पाने के लिए और अपनी ईगो शांत करते हैं कि हम भी किसी से कम नहीं हैं।
ख़ैर, वह वापस जा रही थी। एस एफ़ ओ एयरपोर्ट से प्लेज़ेंटन सबर्ब में जाने के लिए समुद्र के ऊपर बना ब्रिज आधा घंटे की ड्राइव है। मार्था के लिए यह अनुभव नया था और वह अत्यंत उत्साहित थी यह देखकर। वापस जाते हुए धन्यवाद करके वह विनम्रता और शालीनता से उन माँ-बेटी के हाथ चूम कर गई थी और फिनिक्स आने के लिए निमंत्रित कर गई थी। जहाँ सूखे-सपाट पहाड़ थे। जब कि सैन फ्रांसिस्को प्राकृतिक संपदा से भरा पड़ा था।
मार्था के जाने के पश्चात दोनों के बीच चुप्पी का साम्राज्य छा गया था। घर पहुँच कर दोनों अपने-अपने बेडरूम में चली गईं थीं। सामने ख़्यालों की गहरी रात थी। धरा पुनः अतीत की स्मृतियों में विचरने लग गई थी। यश के साथ उसका जीवन बिना कॉमा लगे फ़ुल-स्पीड में दौड़ रहा था। मान्या उनके जीवन की ईश्वर प्रदत अनुपम सौग़ात थी। पढ़ाई मन लगाकर करती थी और वह गर्व से जी रहे थे कि तभी एक गाज गिरी। यश की कार का ट्रैश (कचरे) के भारी ट्रक से एक्सीडेंट हो गया था और वह वहीं स्पॉट पर उनको रोता बिलखता छोड़कर चला गया था। मान्या पापा की जुदाई सह नहीं पाई थी, पूरे शॉक में चली गई थी। हाल तो धरा का भी यही था लेकिन मान्या के कारण उसने धीरज का दामन थाम स्वयं को और उसको भी सँभाला। उसके जीवन का अँधेरा कभी कुछ कहता लगता तो कभी ख़ामोश हो जाता था। तब वह छाती के द्वार खटखटाती थी। दिल की दीवारों को नाखूनों से खरोंचती थी। और यादें दबे पाँव आकर बदन पर रेंगती थीं। तब दिन बरस बन जाते थे, बिताए नहीं बीतते थे। यश की स्मृतियों में भी धरा को यश की गंध आती थी। जैसे नींबू काटने पर मुँह में खटास आ जाती है। जब कभी उसे ज़ोर से रोना आता तो दोनों हथेलियों से अपने होंठों को भींच लेती थी कि कहीं मान्या न सुन ले।
मान्या ने इंटरनेशनल बिज़नेस में ग्रेजुएशन की तो उसको अच्छी जॉब मिल गई थी। उसका ध्यान बँट गया था और धरा ने एक स्टोर मैनेजर की पोस्ट ख़ाली होने पर वहाँ अर्ज़ी दी। उसकी स्मार्टनेस पर उसे भी नौकरी मिल गई थी। अब माँ-बेटी को एक दूसरे से आँखें चुरा कर रोने का समय कम ही मिलता था। ज़िन्दगी पुनः जी उठी थी। ‘ढाक के वही तीन पात’। धरा का सोशल सर्कल अच्छा था। उसकी सखी-सहेलियाँ कभी-कभार आ जातीं लेकिन फोन पर सम्बन्ध अवश्य बनाए रखती थीं। उसे ज़िंदादिली से जीना सिखाती थीं। फिर भी एकांत में दबे पाँव एक क्षण आता था स्मृति का क्षण। तब—जब ख़्यालों की रात बहुत गहरी होती थी और वह टूट कर बिखर जाती थी।
यूँ ही वक़्त सरक रहा था कि एक दिन यश के नाम से एक चिट्ठी आई जिस पर यश के पुराने घनिष्ठ मित्र रघुवंश का नाम लिखा हुआ था। यह चिट्ठी अमेरिका से ही थी। जबकि अब केवल भारत से भी कभी-कभार किसी की चिट्ठी आती थी। रघुवंश ने यश को सूचित किया था कि उसकी पत्नी जेनिफ़र (अमेरिकन) का निधन हो गया है। वह अपने दोस्त की सहानुभूति की आस में था लेकिन धरा ने धैर्य पूर्वक उत्तर दिया कि उनके दोस्त यश भी नहीं रहे हैं। धरा का पत्र मिलते ही रघुवंश ने फ़्लाइट पकड़ी और सैन फ्रांसिस्को आ गए। दोनों दोस्तों के परिवार टूट गए थे, वह भी एक ही समय। रघुवंश के आने पर यश और धरा की शादी की एल्बम निकाल कर वह इकट्ठे बैठ कर देख रहे थे। यश है? कि नहीं है? विश्वास करना दुरूह हो गया था। दो दिन होटल में रुक कर रघुवंश वापस चले गए थे लेकिन उनकी उपस्थिति ने बहुत ढाढ़स बँधाया था धरा और मान्या को। कुछ पल ऐसे भी होते हैं जो भविष्य से अनजान होते हैं फिर भी साँसों में बस जाते हैं, प्राणों में धड़कते हैं। इन सब से गुज़रते हुए एक समय आता है जब वह इंसान आगे बढ़कर कुछ सोच पाता है। धरा यही सब सोचते हुए नींद के गार में उतर गई थी।
अगले दिन रघुवंश का फोन आया तो धरा ने सोचा पहुँचने का फोन आया होगा लेकिन फिर हर दिन उसका हाल-चाल मान्या के विषय में पूछना चलता रहा। उसकी बेटी माला के विषय में भी बातचीत होने लग गई थी। क्रिसमस के बाद रघुवंश माला को लेकर पुनः सैन फ्रांसिस्को आ गए थे। मान्या भी घर पर थी। माला का फ़ाइनल ईयर था ग्रेजुएशन का। हम उम्र लड़कियों का आपसी तालमेल बैठ गया था। माला अपनी माँ जैसी गोरी अँग्रेज़ थी लेकिन उसके बाल काले थे पापा के जैसे और आँखें भी मोटी-मोटी पापा जैसे आकर्षक थीं। बेहद ख़ूबसूरत! धरा मान्या की ओर से निश्चिंत हो गई थी। मान्या रघु अंकल में अपने पापा की झलक देखती थी। दोनों दोस्तों की आदतें एक जैसी थीं, क्योंकि वह बचपन के दोस्त थे। जिन्हें वह नोट करती थी। उसे अपना घर भरा हुआ अच्छा लग रहा था। चार दिनों में ही दोनों के चेहरे खिल से गए थे। माला को भी धरा आंटी डीसेंट लगीं। वह उसे बहुत भा गईं थीं, क्योंकि वह कोई भी बात उस पर थोपती नहीं थीं।
मान्या अपने पापा को बहुत मिस करती थी। उसके नए मैनेजर साहिल सैनी का सामीप्य ऑफ़िस में उसे एक सहारे के रूप में लगता था। वे तीन महीने के लिए इस ऑफ़िस में आए थे। दोनों एक दूसरे को पसंद करने लग गए थे और अब तो डेट्स पर भी जाने लग गए थे। उधर माँ को लगा कि वह दिल से ज़ख्मी बेटी को मना नहीं कर पाएगी, तो वह चुप्पी साध गई थी। कई बार यादों से उभरे ज़ख्मों के जवाब में एक रिक्तता होती है जिसे भरना सुनने वाले के ज़िम्मे होता है। उसके कथन के अनुसार साहिल सैनी बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व का छह फ़ीट ऊँचा, हल्की मूँछ वाला युवक था जो मान्या को बहुत पसंद करता था। मान्या की पीली पड़ी चेहरे की रंगत अब अपना रूप बदल रही थी। वह गुलाबी आभा में तब्दील हो रही थी। माँ को बेटी के चेहरे पर हल्की मुस्कान थिरकती देखकर सुकून मिलता था। उससे रहा नहीं गया। धरा ने रघु को फोन पर सारा राज़ बता दिया। अगले ही दिन रघु फ़्लाइट लेकर उसके पास आ पहुँचा। इस बार वह होटल ना जाकर घर पर ही आ गया था। साँझ ढले मान्या जब ऑफ़िस से घर आई तो रघु अंकल को सामने पाकर खिल गई। उसके चेहरे की गुलाबी रंगत देखकर रघु ने पूछ ही लिया, “जिंदगी में कोई आ गया है क्या मान्या, तुम्हारा चेहरा भेद खोल रहा है।”
“जी हाँ अंकल, मेरा बॉयफ़्रेंड है। मैं डेट कर रही हूँ आजकल उसके साथ।”
अमेरिका में बच्चे झूठ बोलकर कोई बात छुपाते नहीं हैं। वह खुली किताब की तरह होते हैं। उसके विषय में एक-दो बातें पूछ कर रघु शांत हो गए थे। मान्या की उम्र की आहटें उसकी गति बता रही थीं। रघु ने एक बड़े रेस्टोरेंट में अगली रात डिनर के लिए मान्या को कहा कि वह साहिल को भी इनवाइट कर ले उससे मिलकर उन्हें हार्दिक प्रसन्नता होगी, धरा भी साथ थी। बहुत ही सरल स्वभाव का लगा था साहिल, बच्चों-सा निश्छल। रघु और धरा दोनों को वह पसंद आ गया था। रघु के होने से धरा को तसल्ली हो गई थी। रघु निश्चिंत वापस चले गए थे।
माला की मई में ग्रेजुएशन थी। रघु बहुत उत्साहित थे। वहीं हाल के बाहर माला ने पापा को बॉब से मिलवाया। वह बॉब से डेटिंग कर रही थी। बॉब माला का सीनियर था, उसी यूनिवर्सिटी से पढ़ कर गया था। अब नॉर्थ कैरोलिना में टेक्निकल कंपनी में कार्यरत था। दोनों को माला की ग्रेजुएशन की प्रतीक्षा थी। उसने अपने पापा से कहा, “पापा, अब मैं वयस्क हो गई हूँ और शादी के लिए तैयार हूँ! बॉब को इसी दिन का इंतज़ार था। आपकी सहमति हो तो हमारी शादी करा दीजिए।”
रघु ने बॉब के अमेरिकन माता-पिता को बुलवाया और चर्च से तारीख़ ले ली फिर सबको निमंत्रण भेज कर ख़बर कर दी। नियत समय पर सब रिश्तेदार और दोस्त पहुँच गए। मान्या और साहिल भी, मस्ती के रंग में थे। दूधिया सफ़ेद डिज़ाइनर गाउन में माला कोई स्वर्ग से उतरी अप्सरा लग रही थी। माला और बॉब शादी के बँधन में बँध गए। हवाओं में शादी की सुगंध छाई हुई थी। पाँच सितारा होटल के हाल में सभी जोड़े नृत्य करने के लिए माला और बॉब के आसपास थिरक रहे थे। मान्या ने पेस्टल पर्पल शिफ़ॉन के गाऊन के साथ कान में डायमंड के लंबे लटकन व गले में पतली सोने की चेन डाली हुई थी। साहिल की बाँह में हाथ डाले हुए वो सबसे अलग लग रही थी। धरा ने सिंपल ज़री की प्लेन साड़ी के साथ गले में लंबी डबल सोने की चेन पहनी थी। कानों में डायमंड के सॉलिटेयर थे। जिससे उसका चेहरा दमक उठा था। रघु उसके रूप को निहारता ही रह गया। उसका जी चाहा कि वह धरा को प्रपोज़ कर दे लेकिन इसके लिए उसे बेटी से आज्ञा लेनी थी।
रघु ने जैसे ही माला से बात की, वह अपनी माँ की अनुपस्थिति में पापा का किसी और का हो जाना सह नहीं पा रही थी। अब उसे पापा पर अपना एकछत्र अधिकार लगने लगा था। नई माँ को घर में स्वीकार करना उसके लिए बहुत दु:स्सह क़दम था लेकिन अपनी अनुपस्थिति में पापा का एकाकीपन सोच कर उसने काफ़ी ना नुकर के बाद हामी भर दी।
वहीं मान्या ने यह सुनते ही उत्साहित हो माँ को दोनों बाँहों में भर लिया और बोली, “मुझे रघु अंकल पापा जैसे लगते हैं मामा! मैं दोबारा से पापा पाना चाहती हूँ! मुझे मालूम है वह आपको बहुत प्यार से रखेंगे। हाँ माँ!!”
उधर धरा सोच रही थी—यादें! जो अतीत से जुड़ी एक धरातल पर घटी होती हैं। जिनकी प्रविष्टि पर आपका पूर्ण स्वायत्त अधिकार होता है; आप उनमें आकंठ डूब सकते हैं फिर चाहे आप रोएँ या हँसे! संतुष्ट हों या दर्द में डूब जाएँ। यदि आप कोई ठोस क़दम उठा लेते हैं तो ख़ुशियों की क्या गारंटी? कहीं ज़माने भर का दर्द आपकी झोली में न डल जाए! लेकिन रघु का रवैया और अपने होने का एहसास उसे हरदम देते रहना—धरा को सकारात्मक रुख़ अपनाने की ओर प्रेरित कर रहा था। रघु ने जैसे ही सबके सम्मुख उसे प्रपोज़ किया, तो वह शोडिषी सी लजा गई थी।
लोकल आर्य समाज में धरा की बहन गार्गी, जिसे फ्लोरिडा से बुलाया गया था, व सारे परिवार के समक्ष रघु ने धरा की माँग भरी और मंगलसूत्र डाल दिया। धरा सहम-सी गई। ना मालूम उसके भीतर कौन से अंधड़ चल रहे थे जो वह बाहर शांत व संयत थी, पर भीतर के कोलाहल को समेट नहीं पा रही थी। इधर मान्या संतुष्ट हो गई थी कि माँ को सुरक्षित हाथों में सौंप कर अब वह सुहागन बनकर घर से विदायगी कर सकती है। वे सब एक नए रूप में घर वापस जा रहे थे। धरा ने अपनी प्यारी सखी-सहेलियों को फोन पर ख़ुशख़बरी दी और अपनी फ़्लाइट भी बताई। वे लोग इकट्ठी होकर एयरपोर्ट पर फूल और बुके लिए उन्हें लेने आ पहुँचीं थीं।
अगले दिन वही सूना घर गोल्डन और जामुनी फूलों और गुब्बारों से दुलहन जैसा सजा हुआ था। दीवारें मुस्कुरा रही थीं और आँगन नाच रहा था। मान्या और साहिल भी इतनी ज़ोर के म्यूज़िक में हर्ष विह्वल हो सबके बीच थिरक रहे थे। इसके साथ ही मान्या की शादी की तारीख़ अगले इतवार की पक्की कर दी गई। इनकी शादी पंजाबी रीति-रिवाज़ से होनी थी। साहिल के माता-पिता और छोटा भाई भी तीसरे दिन पहुँच गए थे; इंडिया से मान्या की शादी का डिज़ाइनर लहँगा-चोली वग़ैरह लेकर। मान्या प्रफुल्लित थी कि उसकी शादी की वेदी पर मम्मी सुहागन बन नए डैडी के साथ बैठकर कन्यादान करेंगी।
सारे रीति-रिवाज़ों के साथ मान्या का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ। मान्या की नव ब्याहता माँ नए पापा के साथ ख़ूब जंच रही थी और मान्या मन ही मन माँ को सुहागन देखकर पुनः जी उठी थी। उसका जोश परम पर था। अतीत का कोहरा छँट गया था और अब समक्ष था निरभ्र आसमान! जहाँ रात्रि में सितारों की ओढ़नी टँकी थी। सोमवार को विदाई हुई। वह अपने ससुराल परिवार के साथ माँ की ओर से बेफ़िक्र हो लॉस एंजेलिस चली गई थी।
धरा ने सारा बिखरा घर कार्डबोर्ड के डिब्बों में समेटा। और बाक़ी चीज़ें अपनी फ्रेंड्स को दे दीं। क्योंकि रघु एक बड़ी कंपनी का सीईओ था, उस का घर तो पहले से ही सेट था। वो बात और है कि ना जाने यह डब्बे कब खुलेंगे? या कभी खुलेंगे भी कि नहीं। सब के जाने के बाद अपने आँचल में ढेरों ख़ुशियाँ समेटे अतीत की सुधियों को दरकिनार रख वह रघु के होने से निश्चिन्त हो भविष्य में उड़ान भरने चली थी।
उधर साहिल के मम्मी-पापा और छोटा भाई रोहन एक महीना उनके साथ रहकर भारत वापस चले गए थे। मान्या हफ़्ते में तीन दिन फ़्लाइट लेकर अपने पुराने ऑफ़िस में सैन फ्रांसिस्को जाती थी। वह अपने ट्रांसफ़र के चक्कर में लगी थी। इससे साहिल कभी-कभी खीझ जाता था। उसका मेन ऑफ़िस लॉस एंजेलिस में ही था। वह तीन महीने की ट्रेनिंग के लिए उनकी कंपनी में गया था जब मान्या से मुलाक़ात हो गई थी और वह मुलाक़ात ही आज उन्हें क़रीब ले आई थी। बाक़ी दिनों में मान्या ‘वर्क फ़्रॉम होम’ यानी घर से ही काम कर रही थी। एक दिन साहिल ने मान्या से कहा, “चलो, आज डिनर बाहर करने चलेंगे, मैं आठ बजे शाम को आ जाऊँगा तुम तैयार रहना।”
मान्या घर से काम कर रही थी। उसे पता ही नहीं चला कब आठ बज गए। साहिल के पहुँचने तक वह तैयार नहीं हो पाई थी। साहिल ने आकर ग़ुस्से में उसके हाथ से लैपटॉप छीन लिया। वह कोई ज़रूरी मैसेज कर रही थी। वह भी ग़ुस्से में चिल्लाई, “यह क्या किया तुमने साहिल? मैं काम कर रही थी! सब गड़बड़ कर दिया!”
यह सुनकर साहिल ने ग़ुस्से से लैपटॉप ज़ोर से पलंग पर फेंक दिया। इस पर मान्या अपने लैपटॉप को उठाकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लग गई। इतना ग़ुस्सैल है साहिल! उसके स्वभाव का यह गुण तो उसे मालूम ही नहीं था। उसने डिनर के लिए रेडी क्या होना था? सारा माहौल ही डरावना और कुटिल बन गया था। साहिल के ऐसे रूप की उसने कल्पना भी नहीं की थी। वह बहुत डर गई थी। खड़ी-खड़ी काँप रही थी। फिर बाथरूम में जाकर उसने मुँह-हाथ धोया और सॉरी! सॉरी! बोलकर साहिल को प्यार करना चाहा तो उसने उसके हाथों को झटक दिया। मरती क्या करती? वह चुपचाप बाहर बरांडे में जाकर बैठ गई। वह मनन कर रही थी कि अब क्या करे? क्या माँ को फोन करे? नहीं, वह माँ को बेचैन नहीं कर सकती। उसे स्वयं यह सब कुछ सहना होगा। उसने लव मैरिज की है।
वक़्त के साथ धीरे-धीरे ज़िन्दगी पुनः ढर्रे पर चल पड़ी थी कि एक दिन साहिल की क़मीज़ का एक बटन टूटा हुआ था। वह ज़ोर से चिल्लाया, “तुमसे एक बटन भी नहीं लगाया जाता मान्या!”
इस पर मान्या ने कहा, “मैंने देखा नहीं था। तुमने कहा है तो अब लगा दूँगी।”
तभी साहिल ने अलमारी में से उसका एक टॉप हैंगर समेत उतारा और कैंची से उसके सारे बटन काट दिए। यह देखकर मान्या काम छोड़कर भागी और उसका हाथ पकड़ा तो उसने कैंची उसके हाथ पर दे मारी। मान्या का हाथ ज़ख़्मी हो गया था। वह अनदेखा करके ऑफ़िस चला गया लेकिन मान्या का दिल बुरी तरह ज़ख्मी हो गया था। अपने ज़ख़्मों को दिल में छुपाए दोनों की पटरी फिर से बैठने लगी थी कि एक दिन सूप में नमक कुछ ज़्यादा हो गया। जो कि ठीक हो सकता था। लेकिन उसने वह सूप का कप मान्या की प्लेट के खाने पर उड़ेल दिया। कुछ मान्या के कपड़ों पर भी गिरा। ‘ढाक के वही तीन पात’! वह ज़रा-सी भी ग़लती होने पर कुछ बोलने का मौक़ा ही नहीं देता था और अपना रिएक्शन कर देता था। मान्या को बहुत परेशानी होने लग गई थी। वह उससे डरने लग गई थी।
एक इतवार को मान्या बहुत तन्मयता से ‘एलेक्स हेली’ का उपन्यास “रूट्स” पढ़ रही थी। तभी साहिल ने कहा, “राघव और रिया की शादी की आज साल गिरह है। चलो, जल्दी से तैयार हो जाओ। अभी चलना है। मैं फ़्रेश होकर आया।”
उसने आकर देखा कि मान्या अभी भी लेटी हुई उपन्यास पढ़ने में तल्लीन है और उसने कपड़े भी नहीं निकाले थे। यह देखकर उसे बहुत ग़ुस्सा आया। उसे जब भी ग़ुस्सा आता था तो वह आपे से बाहर हो जाता था। उसने बाथरूम से लिक्विड सोप कंटेनर उठाया और लेटी हुई मान्या के ऊपर चढ़कर बाएँ हाथ से मान्या का मुँह पकड़ा और दाहिने हाथ से उसके मुँह के भीतर लिक्विड सोप भरने लगा। स्वयं उसकी बाँहों पर चढ़कर बैठ गया था। मान्या तड़प उठी। उसने दोनों टाँगों से उसको पीछे से धक्का दिया। उपन्यास उसके हाथ से छूटकर वहीं गिर गया था। पास में पड़े फोन और टेबल से कार की चाबी लेकर वह दरवाज़ा खोलकर कमरे से बाहर भागी। और कार लेकर मेन रोड पर आ गई। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करने जा रही है। वह बेध्यानी में मम्मी की एक पुरानी सहेली के घर चल पड़ी, जहाँ वह कभी यहाँ आने पर पापा के साथ गई थी—‘संगीता आंटी’। उनके घर पहुँच कर उसने उन्हें अपनी शारीरिक प्रताड़ना के विषय में सब कुछ बताया और फिर ढेरों उल्टियाँ कर-कर के सोप से मुँह ख़ाली किया।
संगीता और उसके पति राजेश, धरा से पूछे बिना कोई क़दम नहीं उठाना चाहते थे। रात दस बजे धरा को फोन लगाया, तो वह तड़प उठी और ख़ूब रोने लगी। रघु ने सारी बात पूछी। उन दोनों के पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गई और सुबह की पहली फ़्लाइट लेकर वह लोग संगीता के घर पहुँच गए। चूँकि मान्या ने लव मैरिज की थी, वह स्वयं को दोषी मान रही थी और भयभीत हुई बैठी थी। लेकिन माँ का तो कलेजा फटा जा रहा था। वह निश्चिंत थी कि उसकी ‘जाई’ (बेटी) ख़ुश है। पर यहाँ तो उस पर हुए ज़ुल्म की हद ही हो गई थी। वह लोग मान्या को लेकर साहिल के पास गए। केस पुलिस में जा सकता था, लेकिन रघु ने उसके पापा से इंडिया में बात की और उन्हें सब बातों से अवगत कराया। साहिल को दोषी क़रार देते हुए तलाक़ का फ़ैसला कर आए। धरा के तो हाथ-पैर फूल रहे थे। सब कुछ रघु ने सँभाला हुआ था। घर आकर धरा ने रघु से कहा “तुम्हें अपने पार्श्व में पाकर मैं पूर्णता का अनुभव कर पा रही हूँ। तुम ही हमारे रक्षा कवच हो और आत्मविश्वास से भरकर यह फ़ैसला ले पा रहे हैं हम तुम्हारे होने से।”
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