छुट-पुट अफ़साने . . . एपिसोड–43

15-12-2023

छुट-पुट अफ़साने . . . एपिसोड–43

वीणा विज ’उदित’ (अंक: 243, दिसंबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

मेरी यादों के झरोखे अपने देश से निकल कर अब विदेशों की ओर झाँकने लगे हैं। कई लोगों के फोन आए कि अब बाहर के बारे में भी अपना अनुभव सुनाएँ। जब बच्चे छोटे थे तो एक ज्योतिषी ने कहा था कि आप सबके पैरों में विदेश की यात्रा लिखी है। उस समय विदेश जाने के आसार कहीं नज़र नहीं आते थे तो हैरानगी हुई थी। तब क्या मालूम था कि तकनीकी इतनी विकसित हो जाएगी कि सब दूरियाँ मिट जाएँगी। 

अब तक मेरी पाँच बहनें और देवर देवरानी सब अमेरिका में सेटल हो चुके थे। फिर भी यह सोच ही रोमांचित करने वाली थी कि हम भी अमेरिका जाएँगे। देश-विदेश की सरहदों और समुद्रों को लाँघते हुए दुनिया के सबसे अमीर, शक्तिशाली और अनुशासित माने जाने वाले देश में पहुँचेंगे। तब तक पाश्चात्य देशों से अभी तक भारत की आम जनता का परिचय नहीं हुआ था। 

रवि जी के दिमाग़ में आ गया कि चलो अमेरिका चलते हैं क्योंकि कश्मीर तो बंद है। घूम आते हैं। चूँकि, रोहित चंडीगढ़ में था, तो स्वाति को भी जीसीजी यानी गवर्नमेंट कॉलेज फ़ॉर गर्ल्स चंडीगढ़ में एडमिशन करा दिया और हॉस्टल में डाल दिया क्योंकि रवि जी के चाचा जी का परिवार भी वहीं था और रवि जी की बहनें भी वहीं रहती थीं। सो चिंता की कोई बात नहीं थी। 

दिसंबर के पहले हफ़्ते में चावला भाई साहब के बेटे विनीत और मोना (विन्नी) की शादी थी। दुलहन मेरी सहेली शोभा की सहेली मीना की बेटी थी। (मीना जो मशहूर गायक के.एल. सहगल की भतीजी हैं।) 

हम 6 दिसंबर को उनकी शादी में पूरी तरह सम्मिलित हुए। विनी और मोना भी हनीमून के लिए इंग्लैंड होते हुए अमेरिका जा रहे थे मेरी बहनों के पास। हम दोनों भी एक हफ़्ता इंग्लैंड घूमते हुए आगे अमेरिका जाने वाले थे। 

9 दिसंबर को हमारी फ़्लाइट दिल्ली से नौ घंटे में लंडन हीथ्रो एयरपोर्ट पहुँची। वहाँ हमें रवि जी के दोस्त और दर्शना दीदी के देवर रिसीव करने आए हुए थे। वो पप्पू के जेठ भी थे। हम दोनों की बहनें एक ही घर में ब्याही थीं।

1992 में अभी दूरदर्शन ही चलता था। उसमें भी अशोक कुमार “छन्द पकइया-छन्द पकइया” बोलकर “हम लोग” सीरियल शुरू करते थे और लल्लू जी की बातें करते थे। जबकि विदेशों में टीवी के सैंकड़ों चैनल्स होते थे। और फ़िल्में भी विदेशों में नहीं बनती थीं। कभी-कभार कोई अंग्रेज़ी मूवी देख लो, तो पाश्चात्य देशों के दर्शन हो जाते थे। या फिर अंग्रेज़ी मैगजींस में फोटो देख लो। वैसे मेरी बहन शोभा 1974 में ब्याह कर अमेरिका जा चुकी थी। पर सुनने और देखने में बहुत फ़र्क़ होता है सो अब हम अमेरिका देखने जा रहे थे। हमने एक हफ़्ता लंदन में रहना था। 

सो हमारे लिए लंदन “खुल जा सिम सिम” होने पर . . . दिखने वाला, अजूबों से भरा हुआ शहर था! सच बताऊँ मैं तो हैरान होकर एक के साथ एक सटी हुई इमारतें सैकड़ों साल पुरानी, लेकिन नए होने का भ्रम देती थीं जो उनको ही देखती रह गई थी। 

ऐसे लगा हम किसी घर के भीतर जाने लगे हैं। लेकिन यह क्या? यह तो रेलवे स्टेशन था। धरती के तल से 5 मंज़िल नीचे तक रेलगाड़ियों का जाल बिछा हुआ था, जो किसी अजूबे से कम नहीं था। एस्केलेटर से नीचे उतरते जाओ। अपने टाइम से रेलगाड़ियाँ आ रही हैैं और अपने आप दरवाज़े बंद हो रहे हैं। मैं तो यह सब कुछ विस्फारित नेत्रों से देख रही थी। 

बड़े-बड़े नेम ब्रैंड्स मेसी, डिल्लर्ड्स, सीअर्ज़, टीजे मैक्स आदि हम पहली बार देख रहे थे। तब भारत में मॉल नहीं होते थे। भारत में ऐसा कंसेप्ट ही नहीं था। बहुमंज़िले माल या स्टोर्ज़ वह भी क्रिसमिस के दिनों की सजावट के साथ देखकर लगता था हम  परियों के देश(fairy land) में आ गए हैं। 

 मैडम टुसाड(Madame Tussaud) का वैक्स म्यूज़ियम(wax museum) –गाँधीजी, इंदिरा गाँधी, अमेरिकन लीडर्स-सब की मूर्तियाँ बनी थीं वहाँ। लंदन में Trafalgar Square ट्राफ़ाल्गर स्कुएअर और ‘बिग बेन क्लॉक’ प्रसिद्ध पुरानी इमारते हैं। ढेरों कबूतर . . . आपके हाथ में भी दाना चुग लेते हैं। उनको सैलानियों की आदत पड़ चुकी है। सभी कुछ मनभावन था। साऊथ हॉल में पहुँचकर लगा हम दिल्ली के करोल बाग़ में पहुँच गए हैं। वहाँ वैसा ही बाज़ार है। भारतीयों ने अपनी ज़रूरत की चीज़ें उस बाज़ार में रखी हुई हैं। जैसे— वी शेप चप्प्लें, झाड़ू, मिठाइयाँ इत्यादि। वहाँ कढ़ाई में जलेब तले जा रहे थे। 

सरी काउंटी (Surrey county) हम दोस्त भूपी और मंजु को मिलने गए तो रास्ते में क़िले (castles) देखे। पुराने-पुराने क़िले और महल जो हम अंग्रेज़ी कहानियों में सुनते थे। और तालाबों (ponds) में दूध जैसे सफ़ेद प्रवासी पक्षी (milky migratory-birds) और हाउसबोट्स भी देखीं। पूरे रास्ते भरपूर प्राकृतिक सौंदर्य था! उन दिनों बर्फ़ भी गिर रही थी बीच-बीच में! 

उनकी दुकान “द सन” के ऊपर उनका प्यारा सा घर था। यह मंजू मेरी जालंधर की सहेली नीलम की छोटी बहन थी। नीलम का आग्रह था कि एक बार उसे देख तो आ, वो कैसी है! बेटियाँ विदेशों में ब्याह देने से धुक-धुकी तो लगी रहती है परिजनों को। विशेषकर जब वह सालों-साल यदि इंडिया ना आएँ तो . . .  उसे देखा वह सुखी थी बहुत ही व्यस्त। 

बर्मिंघम पैलेस (Birmingham palace) और वहाँ के सिपहसालार भी देखे। आकर्षक वेशभूषा में। उनके घोड़े इतने बढ़िया थे कि लगता था इन्हें ही अरबी घोड़े कहते होंगे। क्रिसमस आने वाली थी सो सब जगह सजावट ही सजावट थी। वहाँ बिना छत की बसों में शहर घूम कर ठंड में भी ख़ूब आनंद आ रहा था। देव, जिनके पास हम गए थे। उनका घर बहुत सुंदर सजा था। बाथरूम में भी झालरों वाले परदे व टब थे। तब यह सब कुछ नया था। 

हमने तो इन सब जगह की केवल फोटोस देखी हुई थीं मैगजींस में। तरह-तरह की मशहूर कारों के शोरूम भी देखे। और बच्चों को ख़ूब डिटेल में चिट्ठियाँ लिखीं। 

ईश्वर से मना रही थी कि मेरे बच्चे भी यह सब कुछ देखें। ईश्वर ने सुन भी लिया। क्योंकि समय बदल रहा था। समय का चक्र तीव्र गति से घूम रहा था। सारे संसार में परिवर्तन आ रहा था। पूरे 8 दिन हम इंग्लैंड घूम कर अब अमेरिका जा रहे थे। 

मुझे टेम्स रिवर(Thames river) देखने का बहुत मन था। “लव स्टोरी” (Love story) उपन्यास पढ़ा था जवानी में उसी के कारण। सो, वहाँ जाकर मैं एक बेंच पर बैठी और रवि जी को भी साथ में बैठाया। मानो मैं उस उपन्यास में जी रही थी उन पलों में। 

वहाँ एक अजीब घटना घटी—मेरी जालंधर की पक्की सहेली और पड़ोसन! शशि इंग्लैंड चली गई थी। एक बार उसका लंदन से कार्ड आया था बस। वह बैंक में काम करती थी मुझे नाम नहीं पता था बैंक का। मैंने यूँ ही सरसरी तौर पर देव भाई साहब से कहा कि मेरी एक सहेली थी शशि दुबली-पतली सुंदर सी! वो यहाँ किसी बैंक में काम करती है। लेकिन मुझे उसका एड्रेस नहीं पता है। इस पर वे बोले कि जिस बैंक में मेरा अकाउंट है वहाँ भी एक शशि है पतली-दुबली सुंदर। कहीं वही तो नहीं . . .? वह इंडिया गई है दो दिन में आ जाएगी। फिर पूछ कर देख लूँगा। 

अब इसे क़ुदरत का करिश्मा कहूँ कि क्या कहूँ कि दो दिन बाद वह आई और देव भाई साहब ने बैंक जाकर उससे बात की कि क्या वो किसी वीना या रवि को जानती है . . .? तो वह ख़ुशी से चहक कर बोली, “हाँ, कहाँ हैं वे?” इस पर देव भाई साहब ने उन्हें अगले दिन घर पर इनवाइट कर लिया कि आपको मिलाते हैं। क्योंकि उस दिन हम सरी काउंटी (Surrey County) गए हुए थे। अगले दिन हम आए तो हमें भी उन्होंने सरप्राईज़ दिया। वह अपने हस्बैंड के साथ आई थी। 

हम दोनों एक दूसरे को देखकर हैरान रह गईं। दोनों ही ख़ुशी के मारे रो रही थीं। कोई ऐसे भी मिल सकता है किसी को विदेश में जिसका पता ही ना हो . . .! सब चकित थे। शायद हमारा दोनों का सच्चा प्यार था सहेलियों का, जिसमें दिल की सच्ची चाहत ने अपना रंग दिखाया था। 

दुष्यंत कुमार ने कहा है ना, “हाथ उठाकर माँगो तो सही, अपने आप मिलेगा।”

इस तरह दामन में ख़ुशियाँ भरते, हम अगले सफ़र के लिए चल पड़े थे। आगे फिर नौ-दस घंटे की फ़्लाइट थी। अथाह सागर था बाहर प्रशान्त महासागर (Atlantic Ocean) नीचे, जिस पर जहाज़ लगातार उड़ रहा था। टेक्नॉलोजी के नए करिश्मे देख कर गर्व होता है! अगली बार फिर अमेरिका पहुँचते हैं।

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