तुझ बिन . . .

01-09-2023

तुझ बिन . . .

नरेंद्र श्रीवास्तव (अंक: 236, सितम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

सूना-सूना लगता तुझ बिन, कुछ भी नहीं सुहाता है। 
साथ गुज़ारे पल जो हमने, रह-रह कसक चुभाता है॥
 
काश वक़्त वह ठहरा होता, 
जब भी हम-तुम साथ रहे। 
सुख-दुख जो भी थे हिस्से के, 
हमने मिल के साथ सहे॥
सुख-सुकूनमय बीते लम्हे, पल फिर वही बुलाता है। 
 
खिले हुए हैं फूल बाग़ में, 
फिर भी उनमें महक नहीं। 
झरना की झर-झर ध्वनि मद्धिम, 
इठलाती-सी चहक नहीं॥
दूर-दूर तक सन्नाटा है, रोता हमें रुलाता है। 
 
जाने किसकी लगी नज़र यूँ, 
प्रेम भरे इस मधुवन में। 
दूर बहारें, रुत पतझड़-सी, 
बिछी उदासी तन-मन में॥
गुमसुम बैठी हँसी-ठिठोली, मंज़र दर्द सुनाता है। 
साथ गुज़ारे पल जो हमने, रह-रह कसक चुभाता है॥

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