तुझ बिन . . .
नरेंद्र श्रीवास्तव
सूना-सूना लगता तुझ बिन, कुछ भी नहीं सुहाता है।
साथ गुज़ारे पल जो हमने, रह-रह कसक चुभाता है॥
काश वक़्त वह ठहरा होता,
जब भी हम-तुम साथ रहे।
सुख-दुख जो भी थे हिस्से के,
हमने मिल के साथ सहे॥
सुख-सुकूनमय बीते लम्हे, पल फिर वही बुलाता है।
खिले हुए हैं फूल बाग़ में,
फिर भी उनमें महक नहीं।
झरना की झर-झर ध्वनि मद्धिम,
इठलाती-सी चहक नहीं॥
दूर-दूर तक सन्नाटा है, रोता हमें रुलाता है।
जाने किसकी लगी नज़र यूँ,
प्रेम भरे इस मधुवन में।
दूर बहारें, रुत पतझड़-सी,
बिछी उदासी तन-मन में॥
गुमसुम बैठी हँसी-ठिठोली, मंज़र दर्द सुनाता है।
साथ गुज़ारे पल जो हमने, रह-रह कसक चुभाता है॥
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