संजोग

नरेंद्र श्रीवास्तव (अंक: 243, दिसंबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

शर्मा जी उनींदे नीचे की बर्थ पर लेटे थे। उन्हीं के पास उनकी पत्नी आँखों में आँसू लिए खिड़की पर सिर रखे अनमनी-सी आँखें बंद किए बैठीं, अपनी 4 साल की खोयी हुई बच्ची की यादों में खोयीं थीं। 

तक़रीबन दो महीने पहले स्कूल से लौटते वक़्त जाने किस मनहूस घड़ी में उनकी बच्ची को कोई बच्चा-चोर उठा के ले गया। 

“न जाने किस हाल में होगी मेरी बिटिया!” यह सोच-सोच के उनका बुरा हाल था। 

शहर-शहर बच्ची को खोजते हुए वे आज म.प्र. के इटारसी शहर से निराश और दुखी मन से लौट रहे थे। इटारसी देश के बड़े जंक्शन में से एक है। यहाँ देश के हर तरफ़ जाने वाली ट्रेन रुकती है। 

तभी एक छोटी लड़की ने शर्मा जी की पत्नी को झकझोरते हुए पैसे माँगने के लिए हथेली बढ़ाई। पत्नी ने अपनी आँसू भरी आँखों से झकझोरने वाली लड़की पर नज़र डाली तो चौंक गईं। सामने उन्हीं की वह खोयी हुई बेटी थी। 

“मेरी बच्ची” . . . वे ख़ुशी में इतने ज़ोर से चीखीं कि आसपास के सभी यात्री घबराकर देखने लगे। शर्मा जी भी हड़बड़ाकर उठ बैठे। वास्तव में वह लड़की उन्हीं की खोयी हुई बेटी थी। 

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