साथ निभाकर . . . 

01-01-2023

साथ निभाकर . . . 

नरेंद्र श्रीवास्तव (अंक: 220, जनवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

तुमने साथ निभाकर मेरा, जीवन-रूप निखारा भी। 
जीने की भी ललक जगाई, चमका भाग्य सितारा भी॥

 

हो क़रीब तुम, ख़ुशनसीब मैं, 
पल अनमोल हुए सारे। 
हसरत कोई रही न बाक़ी, 
जीत गये सुख, ग़म हारे॥
आसपास की रंगत बदली, बदला नक्श-नज़ारा भी। 

 

ख़्वाब आँख में बसे हुए जो, 
उतरे रूप शृंगार लिए। 
नेह गीत गाये हर धड़कन, 
साँस-साँस झंकार लिए॥
हर पल ऐसे, रब ने जैसे, दे आशीष, दुलारा भी।

 

चप्पा-चप्पा लगा महकने, 
जीवन यूँ गुलज़ार हुआ। 
रोम-रोम रुत सावन-फागुन, 
पल-पल सदाबहार हुआ॥
तूफ़ानों से किश्ती निकली, मंज़िल मिली, किनारा भी। 

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