साथ तुम्हारा . . . 

01-03-2023

साथ तुम्हारा . . . 

नरेंद्र श्रीवास्तव (अंक: 224, मार्च प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

साथ तुम्हारा मिल जाता तो, बाग़ हमारा खिल जाता। 
रहती किश्ती बीच भँवर न, मुझे किनारा मिल जाता॥
 
चमक चाँदनी चंदा के संग, 
हमें सितारे भी भाते। 
सुबह-शाम की सूरज लाली, 
गीत प्यार के मिल गाते॥
बनती प्रेम कहानी ऐसी, ज़र्रा-ज़र्रा हिल जाता। 
 
कोयल कूकें, चिड़ियाँ चहकें, 
कलरव शोर नहीं लगते। 
दूर कहीं बजते वंशी स्वर, 
बन के हूक, नहीं खलते॥
मौसम हर पल मुझे चिढ़ाए, उसका मुखड़ा सिल जाता। 
  
हम भी संग-संग जाया करते, 
महफ़िल में, त्योहारों में। 
जमकर करते हँसी-ठिठोली, 
मिलकर रिश्तेदारों में॥
 
आवभगत के अपनापन में, प्रेम नज़ारा घुल जाता। 
रहती किश्ती बीच भँवर न, हमें किनारा मिल जाता॥

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