शिकवा-ए-उल्फ़त
नरेंद्र श्रीवास्तव
ये कि मैं तो सदा ही तेरे साथ रहा
तू ही मगर ना कभी मेरे साथ रहा
सोचे बग़ैर तू सुन रहा है या नहीं
एक तरफ़ा मैं करता तुझसे बात रहा
तू कब हँसा, कब रोया, कब उदास हुआ
भूला हो तू भले ही, मुझे याद रहा
जाने किस बात पर गले लगाया मुझे
वो मेरा ख़्वाब था और जज़्बात रहा
यूँ रहे अब तक तेरे शहर में ‘नरेन्द्र’
जुदाई तक भी बेबसी का हाथ रहा
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- सजल
- लघुकथा
- कविता
- गीत-नवगीत
-
- अपने वो पास नहीं हैं
- एहसास नहीं . . .
- कोरोना का दंश
- चहुँ ओर . . .
- चाहत की तक़दीर निराली
- तुझ बिन . . .
- तेरे अपनेपन ने
- धूल-धूसरित दुर्गम पथ ये . . .
- प्यार हुआ है
- प्रीत कहे ये . . .
- फागुन की अगवानी में
- फिज़ा प्यार की
- शिकवा है जग वालों से
- सच पूछो तनहाई है
- साथ तुम्हारा . . .
- साथ निभाकर . . .
- सावन का आया मौसम . . .
- सोलह शृंगार
- बाल साहित्य कविता
-
- एक का पहाड़ा
- घोंसला प्रतियोगिता
- चंदा तुम प्यारे लगते
- चिड़िया और गिलहरी
- चूहा
- जग में नाम कमाओ
- टीचर जी
- डिब्बे-डिब्बे जुड़ी है रेल
- देश हमारा . . .
- परीक्षा कोई भूत नहीं है
- पुत्र की जिज्ञासा
- पौधा ज़रूर लगाना
- फूल और तोता
- बारहामासी
- भालू जी की शाला
- मच्छर
- मुझ पर आई आफ़त
- ये मैंने रुपये जोड़े
- वंदना
- संकल्प
- स्वर की महिमा
- हरे-पीले पपीते
- हल निकलेगा कैसे
- ज़िद्दी बबलू
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- किशोर साहित्य कविता
- कविता - हाइकु
- किशोर साहित्य आलेख
- बाल साहित्य आलेख
- काम की बात
- किशोर साहित्य लघुकथा
- हास्य-व्यंग्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-