फागुन की अगवानी में
नरेंद्र श्रीवास्तव
खिले हुए हैं फूल बसंती, फागुन की अगवानी में।
महके मौसम, मन-मयूर भी, झूमे फ़ज़ा सुहानी में॥
पीली-पीली सरसों के संग,
टेसू अँखियाँ लाल करे।
गोलमटोल सूरजमुखी भी,
तके, हाल बेहाल करे॥
बौराई गद्गद् अमराई, गेहूँ बाली धानी में।
कोयल कूकें, चिड़ियाँ चहकें,
मोर, पपीहे नाच रहे।
बगुले बैठे ध्यान लगाये,
तोते, सपने बाँच रहे॥
कलरव पशु-पक्षी का सरगम, हैं मुदित मेज़बानी में।
साजन भी आ गये, साथ हैं,
दमके मौसम नूर हुआ।
चूड़ी की खनखन, साँसों में,
सुनके बहुत ग़ुरूर हुआ॥
सब खोये हैं, मस्ती में हैं, लुत्फ़ मुफ़्त, बेगानी में।
सुबह-शाम की ठंडक थोड़ी,
तपे दोपहर भी थोड़ी।
प्रेममयी दिल भरे कुलाचें,
धूप है साथिन निगोड़ी॥
करते मुग्ध अनुपम नज़ारे, अमृत बन ज़िंदगानी में।
महके मौसम, मन-मयूर भी, झूमे फ़ज़ा सुहानी में।
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