डिब्बे-डिब्बे जुड़ी है रेल
नरेंद्र श्रीवास्तवलंबी-लंबी बड़ी है रेल।
डिब्बे-डिब्बे जुड़ी है रेल॥
कुछ उतरे, कुछ बैठ रहे हैं।
स्टेशन पर खड़ी है रेल॥
सिग्नल हरा न होगा जब तक।
खड़ी रहेगी, अड़ी है रेल॥
मोड़ पड़े खिड़की से देखो।
माला की ज्यूँ लड़ी है रेल॥
खींचले ज़ंजीर कोई तब।
रुकती फ़ौरन डरी है रेल॥
सीख लिखी डिब्बे-डिब्बे में।
लगता लिखी-पढ़ी है रेल॥
कोई मिले तो, कोई बिछड़े।
दिल की दिल से कड़ी है रेल॥
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- बाल साहित्य कविता
-
- एक का पहाड़ा
- घोंसला प्रतियोगिता
- चंदा तुम प्यारे लगते
- चिड़िया और गिलहरी
- चूहा
- जग में नाम कमाओ
- टीचर जी
- डिब्बे-डिब्बे जुड़ी है रेल
- देश हमारा . . .
- परीक्षा कोई भूत नहीं है
- पुत्र की जिज्ञासा
- पौधा ज़रूर लगाना
- फूल और तोता
- बजा-बजाकर ताली
- बारहामासी
- भालू जी की शाला
- मच्छर
- मुझ पर आई आफ़त
- ये मैंने रुपये जोड़े
- वंदना
- संकल्प
- स्वर की महिमा
- हरे-पीले पपीते
- हल निकलेगा कैसे
- ज़िद्दी बबलू
- कविता
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- सजल
- लघुकथा
- गीत-नवगीत
-
- अपने वो पास नहीं हैं
- एहसास नहीं . . .
- कोरोना का दंश
- चहुँ ओर . . .
- चाहत की तक़दीर निराली
- तुझ बिन . . .
- तेरे अपनेपन ने
- धूल-धूसरित दुर्गम पथ ये . . .
- प्यार हुआ है
- प्रीत कहे ये . . .
- फागुन की अगवानी में
- फिज़ा प्यार की
- शिकवा है जग वालों से
- सच पूछो तनहाई है
- साथ तुम्हारा . . .
- साथ निभाकर . . .
- सावन का आया मौसम . . .
- सोलह शृंगार
- किशोर साहित्य कविता
- कविता - हाइकु
- किशोर साहित्य आलेख
- बाल साहित्य आलेख
- काम की बात
- किशोर साहित्य लघुकथा
- हास्य-व्यंग्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-