एहसास नहीं . . .
नरेंद्र श्रीवास्तवतुम्हें प्यार करते हम कितना, ये तुमको एहसास नहीं।
तुझे देख के जीते-मरते, तुम बिन कोई रास नहीं॥
वाट जोहतीं, आकुल आँखें,
अँधियारी-सी घिर जाती।
दूर-दूर तक बिछे उदासी,
कोई चीज़ नहीं भाती॥
हम ही जानें कैसे जीते, जब तुम होते पास नहीं॥
करते रहते बात तुम्हीं से,
तुम में ही खोये रहते।
कभी रूठ जाते मन ही मन,
कभी गिला, शिकवा करते॥
नहीं सुहाता कोई दूजा, कुछ भी कोई आस नहीं।
तुम बिन रातें लंबी लगतीं,
दिन पहाड़ से यूँ लगते।
कभी सँजोते ख़्वाब रँगीले,
कभी कोई क़िस्से गढ़ते॥
तनहाई के पल रह-रह के, पिन से चुभें हिसाब नहीं।
होते हो जब पास हमारे,
क़िस्मत का फिर क्या कहने।
वक़्त लगे दुलहन के जैसा,
सुख के पहने हों गहने॥
तुम ही तुम बस, गुम हूँ मैं फिर, दुनिया का आभास नहीं।
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