प्रीत कहे ये . . . 

15-07-2022

प्रीत कहे ये . . . 

नरेंद्र श्रीवास्तव (अंक: 209, जुलाई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

चाह रहा है कोई हम को, इसका हम को पता नहीं। 
चाह रहे हैं हम भी जिसको, इसका उसको पता नहीं॥
 
आँखें ही जानें ये तो बस, 
कौन इसे कब भा जाये। 
दिल को अपनी बात बताकर, 
ख़्वाब सजाने लग जाये॥
दीवाना, आवारा हो फिर, इसमें उसकी ख़ता नहीं। 
  
सितम ज़माना, कितने ढाये, 
क़िस्से सबके सुने-सुने। 
लुके छिपे सब रहते चुप-चुप, 
मन ही मन में गुने-गुने॥
सागर-प्यार हिलोरें मारे, तट का अता-पता नहीं। 
 
बाट जोहते रहते हरदम, 
बिन वादे, उम्मीद लिए। 
कोई गिला न शिकवा कोई, 
साँसों को संगीत दिए॥
किसी मोड़ पे मिल जायेंगे, ऐसी कोई धता नहीं। 
 
काश प्रेम में मिलना होता, 
और बिछड़ना कभी नहीं। 
तनहाई की तपन न होती, 
बाट जोहना कभी नहीं॥
कब सुबहा हो, शाम ढले कब, प्रीत कहे ये पता नहीं। 

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