चहुँ ओर . . .
नरेंद्र श्रीवास्तव
पाया साथ तुम्हारा जबसे, मंज़िल मैंने पा ली है।
ख़ुशियों का संसार मिला है, चहुँ ओर ख़ुशहाली है॥
रोम-रोम में सावन झूमे,
फागुन मुखड़े पे दमके।
माहुर, काजल रमे प्रीत में,
वेणी, गजरा भी महके॥
मेहँदी इठलाती डोले, कहती क़िस्मत वाली है।
साँसों में सरगम बजती है,
पल भी ठहरा लगता है।
रात अमावस नज़र न आये,
गगन सुनहरा फबता है॥
दीपों से रोशन घर-आँगन, जैसे नित दीवाली है।
बाट जोहते नहीं नयन अब,
ख़्वाबों ने आना छोड़ा।
मख़मल से आभास मिलन ने,
तनहाई से मुख मोड़ा॥
इन्द्रधनुषी रंग बिखरे हैं, रुत की छटा निराली है।
ख़ुशियों का संसार मिला है, चहुँ ओर ख़ुशहाली है!!
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