हलधर नाग का काव्य संसार (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)
दुखी हमेशा अहंकार
संख्या में सबसे बड़ा नवम,
पर सबसे ज़्यादा अहम,
सबसे छोटा नंबर एक,
लेकिन शिखर पर उसकी टेक
नौ ने कहा, “चलो,
एक को नहीं रखेंगे ऊँचा,
घूँसा मारकर इसे,
फेंक देंगें नीचा”
नौ टकराया आठ से,
आठ टकराया सात,
सात टकराया छह,
छह टकराया पाँच,
पाँच टकराया चार,
चार टकराया तीन,
तीन टकराया दो,
दो टकराया एक।
एक मारेगा किसे?
उस पार तो शून्य,
शून्य से कहा, “भाई, उन्होंने
मुझे अपने सिर से दिया धक्का
मैं नीचे छितर जाऊँगा,
बचने का कोई बताओ उपाय पक्का,
शून्य ने कहा, “सुनो, मैं तुम्हारे
बायीं ओर खड़ा रहूँगा।
चलो एक साथ उतरो नीचे,
बिल्कुल नहीं डरो भाई
जैसे-जैसे मैं बढ़ता जाऊँगा,
तुम्हारा मूल्य भी बढ़ता जाएगा
दोनों उतरे नीचे, बन गए दस,
बाक़ी अंक उठकर बैठ गए बस
करता दुखी हमेशा अहंकार,
अंत में वह जाता हार।
विषय सूची
- समर्पित
- भूमिका
- अभिमत
- अनुवादक की क़लम से . . .
- प्रथम सर्ग
- श्री समेलई
- पहला सर्ग
- दूसरा सर्ग
- तीसरा सर्ग
- चौथा सर्ग
- हमारे गाँव का श्मशान-घाट
- लाभ
- एक मुट्ठी चावल के लिए
- कुंजल पारा
- चैत (मार्च) की सुबह
- नर्तकी
- भ्रम का बाज़ार
- कामधेनु
- ज़रा सोचो
- दुखी हमेशा अहंकार
- रंग लगे बूढ़े का अंतिम संस्कार
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- चेतावनी
- स्वच्छ भारत
- तितली
- कहानी ख़त्म
- छोटे भाई का साहस
- संचार धुन में गीत
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- अछूत – (1-100)
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