हलधर नाग का काव्य संसार

हलधर नाग का काव्य संसार  (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)

चैत (मार्च) की सुबह

 

भकड़ चाएँ, भकड़ चाएँ 
बजने लगी ढेंकी 
कुकड़ू-कू, कुकड़ू-कू 
बोलने लगे मुर्गा-मुर्गी। 
 
कटर काएँ, कटर काएँ 
चला गया सारस अघा 
झगड़ झाल, झगड़ झाल 
बुनकरों का हाथ-करघा। 
 
चएतु भूए, चएतु भूए 
चिड़िया चहकती वन 
तुयाके तुया, तुयाके तुया 
झोंका देती पवन। 
 
घरल घल, घरल घल 
बैलों की बजती घंटी 
घडघड़ाती जाती शगड़ 
ऊबड़-खाबड़ धरती 
 
टन्न टन, टन्न टन 
बजी देवल घंटी 
खिली चमेली की ख़ुश्बू, 
भर भौरों की अंटी। 
 
गूटर गूँ, गूटर गूँ 
करते कबूतर युगल 
सर, सर दूहता गाय 
सुरघुटु ग्वाल। 
 
पूरी चमक से दमका 
भोर का तारा 
मालती-माँ ने लेपा, 
गाय का गोबर सारा। 
 
खन खनाती खं खाँसी 
गाते 'कान्हू केशब' भजन 
झूल झुलिया प्रभाती गाता 
तेली, ताल-आँगन। 
 
भोर-भोर घएसान को, 
आवाज़ देती खतकुरी
वे जाते माहुली लेने, 
लिए हाथ में टोकरी। 
 
कुहू-कूहू गाती कोयल रानी, 
ऋतु राजा की पत्नी 
खरखरी आम डालियों पर 
खेलती आँख-मिचौनी। 
 
धीरे-धीरे उगता सूरज, 
लाल चेहरा बनाकर 
भद-भदाकार उड़ते हँस, 
बैठते झील जाकर। 
 
गौरैया चहकती मेटर मेटर 
जा खपरैली सतह 
काँव-काँव करता कौआ, 
चैत की सुबह। 

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