हलधर नाग का काव्य संसार (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)
चौथा सर्ग
गूँज उठा दुलदुली बाजा
बजने लगे ‘भरनी’ के स्वर
माँ समलेई आगे बलराम
बरस रही जल-धार।
गम गमलान गर्भगृह भीतर
चढ़ रहा धूप गुगुल
सिंदूर, काजल, देहना की माला
और लाल मंदार फूल।
जला सात बत्ती वाला दीपक
डाले श्वेत तंडुल पुंज
करबद्ध करने लगा प्रार्थना
अपनी खुली आँखें मूँज।
सँभाल, सँभाल, माँ समलेई
मँडरा रहा विपद
मुझे जाना होगा संबलपुर से
छोड़ अपना दर्प।
महाकाल रूप में आ रहा
असुर कालापहाड़
उसके साथ मैं नहीं पाऊँगा जूझ
तोड़ देगा मेरे हाड़।
बंगाल से वह लाया है
छंटा हुआ सैन्य-बल
जिससे ओड़िशा के सारे राजा
हो रहे अति-विकल।
पुरी मंदिर के तीन महाप्रभुओं को
कर दिया जलाकर खार
जान बचाकर पंडे-पंड़यारी
भागे इस पार उस पार।
गजपति राजा मुकुंद देव का
सिर काट उतारा मौत की घाटी
हिंदू मंदिरों को किया नष्ट
देवताओं को गाढ़ा गहरी माटी।
अब आई तुम्हारी बारी माँ
तुम्हारी ध्वजा तुम रख दो
कराल-काल रूप धारण कर
उनके सर विच्छेद कर दो।
तंबू-डेरा बनाया पलटन ने
शंकर तालाब के पास
सुबह-सुबह संबलपुर में
बोलेगा धावा वह बदमाश।
बलराम के मुँह की बात पूरी होने से पहले
बरुआ ने भरी चित्कारी
उसके शरीर में प्रवेश कर गई
माँ समलाई माहेश्वरी।
दाँत भींच ग़ुस्सा चबा
करने लगा दन-दन खर-खर
बोला, “हे राजा! क्या आपको लगता है
कालापहाड़ लौटेगा जीवित अपने घर?”
कौन बलवान, मुझे नहीं जानना
आने दो वह पल
छह बहिनों को साथ लेकर
खेलूँगी ख़ूनी खेल।
वह क्या सोचता है दुर्बल मुझे
अरे! मैं हूँ रामचंडी
पानी लाने का ढोंग कर
चुपके से मारूँगी वह शिखंडी।
पूर्व दिशा पार होते ही
अहंकार उसका जाएगा टूट
त्रिशूल से उसे दे छेदूँगी मैं
प्राण जाएगा तुरंत छूट।
भरते-भरते पापों के घड़े का
बढ़ गया इतना भार
मेरे जबड़ों में आते ही वह
हो जाएगा चूर-चूर।
“वह यहाँ क्यों आ रहा है
मैं जाऊँगी उसके पास
सवेरे देखना उठकर तुम
कालापहाड़ की लाश।
बजने लगे शंख, घंटी, बाजा
बरुआ गया गिर
सब लौट गए अपने घर
बंद हो गया मंदिर।
चऊँ चऊँ चऊँ सुनाई देने लगे शब्द
सरसर सरसर सरसर सरसर
दऊँ दऊँ दऊँ दहकने लगी आग
भर भर भर भर।
झाँय झाँय झाँय गरजती रात
सुनसान गाँव की खोल
साँय साँय साँय दक्षिणी हवा
उड़ा रही झीनी धूल।
डब डब डब बजने लगे डमरु
ठिनीनीनीनीनी घंटी
घल घल घल बजता कमरबंद
छुनक छुनक कंठी।
“मेरे लिए रुको, आओ, चलो चलें”
आवाज़ आ रही थी ज़ोर
छमक छमक बजते नूपुर
झन झन झन चूड़ी हार।
शंकर तालाब के पास डाला डेरा
बंगाल का सैन्य-बल
एक-एक कर तीन कोर तंबुओं में
भरे थे सिपाहियों के दल।
सात धांगड़ियों ने किया प्रवेश
नवयुवती नवयुवती
झूमने लगे ज़ोर-ज़ोर से सैनिक
जब देखी उनकी सुंदरता।
किसी ने लिया दही-दूध
किसी ने खाजा-पीठापना
किसी ने ली ताज़ी मूडी
तो किसी ने भूजा चना।
किसी ने सीताफल, सेव
तो किसी ने नारंगी, कमला, केला
लग रही थी वे
इक्कीस-बाईस की लैला।
इधर-उधर देख-देखकर
बुला रही थी तिरछे नयन
भुगतान बाद में दे देना
पहले तो खालो भरमन।
थी जितनी बंग की सेना
सबको दिया खिलाय
ईषत मन से निर्धूम खाया
जब तक वे न अघाय।
खाने के तुरंत बाद
हो गए ग्रस्त अतिसार
जो जहाँ थे वहीं रह गए
उसी जगह गए मर।
शेष रहा ख़ास आदमी
हो गया सचेत
क्यों आई ये सात धांगड़ी
मेरे पास आधीरात।
बिना कौड़ी के दे रही
तरह-तरह खाने को
भीतर कुछ गुप्त रहस्य होगा
मालूम नहीं किसी को।
बाहर देखा जब सैन्य-बल
नहीं था कोई सजीव
धांगड़ियों ने कपट से
उनको कर दिया निर्जीव।
डर गया कालापहाड़
निश्चय किया जाने को दूर
पीछा किया सात बहनों ने
धर रूप भयंकर।
घशन-घाशन घंटी घुलघुला
जीभ लंबी-लंबी कर
खुले बाल भयानक रूप
कटार-खपरा लेकर।
किलकारी मार कर सातों ने
कालापहाड़ को लिया घेर
काँप गया वह असुर
साष्टांग हो गिरा धरती पर।
चंद्रहासिनी और मेटकानी
खड़ी हो गई उसके दोनों पाद
सुरसरी और घंटेश्वरी ने
तोड़कर कुचले दोनों हाथ।
सिर पर खड़ी हो गई
देवी पटना-पटनेश्वरी
पेडू पर खड़ी हो गई
देवी भवानी मानिकेश्वरी।
देवी महाकाली समलेई ने छाती में
तेज़ी से घोंपा त्रिशूल
कालापहाड़ का खेल यहाँ
ख़त्म हुआ बिल्कुल।
जय नारायणी, जय ठकरानी
जय समलेई श्री
युगे-युगे जगत उद्धारे, अवतार लेती
माँ समलेई श्री।
दशहरे के दस दिनों में
धरती दस रूप दस मति
तारा, महाकाली, षोडशी, मातंगी
भैरवी, धूमावती।
धवला, बगला, भुवनेश्वरी
नौवें दिन खांडिया मुंडी
फागुन में माँ माहेश्वरी खाती
आम महुआ की गुंडी।
जिसके मन आशा-विश्वास
होती वह उनकी सहाई
आस्तिकों के लिए देवी
नास्तिकों के लिए पत्थर श्री समलेई।
विषय सूची
- समर्पित
- भूमिका
- अभिमत
- अनुवादक की क़लम से . . .
- प्रथम सर्ग
- श्री समेलई
- पहला सर्ग
- दूसरा सर्ग
- तीसरा सर्ग
- चौथा सर्ग
- हमारे गाँव का श्मशान-घाट
- लाभ
- एक मुट्ठी चावल के लिए
- कुंजल पारा
- चैत (मार्च) की सुबह
- नर्तकी
- भ्रम का बाज़ार
- कामधेनु
- ज़रा सोचो
- दुखी हमेशा अहंकार
- रंग लगे बूढ़े का अंतिम संस्कार
- पशु और मनुष्य
- चेतावनी
- स्वच्छ भारत
- तितली
- कहानी ख़त्म
- छोटे भाई का साहस
- संचार धुन में गीत
- मिट्टी का आदर
- अछूत – (1-100)
लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
-
- अमेरिकन जीवन-शैली को खंगालती कहानियाँ
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की ‘विज्ञान-वार्ता’
- आधी दुनिया के सवाल : जवाब हैं किसके पास?
- इंसानियत तलाशता अनवर सुहैल का उपन्यास ’पहचान’
- कुछ स्मृतियाँ: डॉ. दिनेश्वर प्रसाद जी के साथ
- गिरीश पंकज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की यथार्थ गाथा
- डॉ. विमला भण्डारी का काव्य-संसार
- दुनिया की आधी आबादी को चुनौती देती हुई कविताएँ: प्रोफ़ेसर असीम रंजन पारही का कविता—संग्रह ‘पिताओं और पुत्रों की’
- धर्म के नाम पर ख़तरे में मानवता: ‘जेहादन एवम् अन्य कहानियाँ’
- प्रोफ़ेसर प्रभा पंत के बाल साहित्य से गुज़रते हुए . . .
- भारत और नीदरलैंड की लोक-कथाओं का तुलनात्मक विवेचन
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
- मुकम्मल इश्क़ की अधूरी दास्तान: एक सम्यक विवेचन
- मुस्लिम परिवार की दुर्दशा को दर्शाता अनवर सुहैल का उपन्यास ‘मेरे दुःख की दवा करे कोई’
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