हलधर नाग का काव्य संसार (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)
भूमिका
लोक कवि रत्न हलधर नाग एक जीवित किंवदंती है, जिनकी कविताएँ एक वृहत्तर समाज को जोड़ती हैं। उनके जीवन के संघर्ष की कहानी आधुनिक भारतीय कवियों के लिए प्रेरणा-स्रोत है। बहुत कम पढ़ा लिखा, ग़रीब परिवार में उत्पन्न एक लोक कवि अपनी लोकभाषा में कविताओं के बल पर एक सेलिब्रिटी तक बन सकता है। यह उदाहरण साहित्य के आलोचकों के समक्ष एक सवाल अनुत्तरित छोड़ जाता है कि क्या औपचारिक शिक्षा प्राप्त किए बिना भी कोई आदमी कवि बन सकता है? दूसरे शब्दों में, कवित्व जन्मजात गुण होता है या जन्म के बाद कवि का निर्माण किया जा सकता है?
कविरत्न हलधर नाग की कविताओं में मौलिकता है, नवीनता है, सामाजिक संदेश है, सामाजिक शोषण एवं प्रताड़ना के ख़िलाफ़ उठती हुई आवाज़ है, प्रकृति प्रेम, धर्म-अध्यात्म है और मिथकीय पात्रों का आधुनिकीकारण है। संबलपुरी भाषा के बहुत सारे कवि उन्हें अपना आदर्श मानकर उनकी काव्य-शैली का अनुकरण कर रहे हैं, जिसे साहित्यिक भाषा में ‘हलधर धारा’ कहा जाता है। यहाँ तक कि संबलपुर विश्वविद्यालय में कई शोधार्थी उन पर पीएच.डी. कर रहे हैं। अपनी कविताओं के माध्यम से हलधर नाग ने पश्चिम ओड़िशा की बहु-उपेक्षित भाषा संबलपुरी-कोसली में प्राण फूँक कर नई पहचान प्रदान की है। ऐसे जीवित किंवदंती को ओड़िशा साहित्य अकादमी पुरस्कार (2014), पद्मश्री पुरस्कार (2016), लाइफ़ अचीवमेंट सम्मान (2017) से सम्मानित किया जाना हम सभी के लिए गर्व और गौरव का विषय है।
इतना कुछ नाम-सुनाम होने के बाद भी अभी तक उनकी किसी भी काव्य या कविता का हिंदी अनुवाद की पुस्तक मेरी जानकारी में प्रकाशित नहीं हो पाई है। श्री दिनेश कुमार माली की यह पुस्तक ‘हलधर नाग का काव्य-संसार’ इस शृंखला की पहली पुस्तक है, जो हिंदी जगत को कवि के चिंतन, कविता की रूपरेखा, अंतर्दृष्टि और उनके मानस-पटल पर चल रही काव्यिक हलचल से परिचित करवाएगी।
इस संग्रह में दो महाकाव्य ‘श्री समलेई’ और ‘अछूत’ का हिंदी अनुवाद दिया गया है और साथ ही साथ, सोद्देश्यपूर्वक लिखी गई अनेक सामाजिक कविताएँ हैं, जैसे ‘हमारे गाँव का श्मशान’, ‘पशु और मनुष्य’, ‘स्वच्छ भारत’; आध्यात्मिक पृष्ठभूमि को उकेरती हुई पर कुछ कविताएँ जैसे ‘सोच लो’, ‘लालटेन’, ‘लुलु पुजारी का कालिया’, ‘छंदा चरण अवतार’ एवं ऐतिहासिक महत्त्व की कविताओं में संबलपुर से संबंधित कुछ कविताएँ हैं जैसे ‘कुंजल पारा’, ‘छोटे भाई का साहस’, ‘मिट्टी का आदर’ इत्यादि है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि कवि हलधर नाग की दृष्टि एकांगी न होकर बहुत व्यापक फलक पर आलोकित होती है।
कविता के विभिन्न पहलू जैसे आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक, ऐतिहासिक विषयों पर कवित्त-रस की वर्षा करने के साथ-साथ सामाजिक विद्रूपताओं पर व्यंग्य करने से वे पीछे नहीं हटे हैं। ‘श्री समलेई’ महाकाव्य में संबलपुर की अधिष्ठात्री देवी माँ समलेई की राजा बल रामदेव द्वारा स्थापित करने से लेकर उनके नामकरण और मूर्ति भंजक क्रूर मुस्लिम शासक काला पहाड़ के संबलपुर पर आक्रमण के समय देवी द्वारा उसके विनाश की गाथा में प्रकृति के वर्णन के साथ-साथ तत्कालीन धार्मिक उठापटक का बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुति की गई है। इसी तरह भले ही ‘अछूत’ महाकाव्य त्रेताकालीन शबरी के मिथक पर आधारित है, मगर आज भी उनके इस महाकाव्य में घोर जातिवाद, छुआछूत आदि पर कवि ने तीक्ष्ण प्रहार किया है। शबरी के माध्यम से कवि ने अछूत परिवार में जन्म लेने से पैदा हुई हीनता को भी निम्न पंक्तियों में प्रस्तुत किया है:
राम के पैर पकड़ बोली शबरी—
दुख की बात सुन
मैं किससे कहूँ, क्या बताऊँ,
दुनिया के अवगुण?
नाम की मैं मनुष्य योनि में पैदा हुई
असल कुत्ते से भी हीन
यह बात बताने के लिए
मैं गिन रही थी अपने दिन॥
दूर से वे मुझसे बात करते हैं
मेरे पानी के छींटे से डरते हैं
मेरे शरीर से टकराकर अगर हवा भी
उन्हें छूती है तो वे कपड़े धोते हैं॥
गुरु ने कहा था छप्पन कोटि में
मानव-जीवन ही सार
मिलने-जुलने का फिर क्यों
नहीं मेरा अधिकार॥
क्या मैंने किसी की गाय मारी या किया कोई पाप
नाक-भौं वे सिकोड़ते इतना
अछूत कहकर ठुकरा देते मुझे
सारा जगत जितना॥
सभी मनुष्यों को बनाने के बाद
बचे-खुचे कीचड़ से, हे विभु
क्या उस मिट्टी से मुझे बनाया?
मुझे बताओ, मेरे प्रभु!॥
मुझे गुरु के पीछे मर जाना चाहिए था
रह गई उनकी बात मानकर
क्या लाभ, क्या उपलब्धि इस जीवन में
सभी ने देखा मुझे हीनमान॥
पूरी दुनिया का अभिशाप मैं हूँ
धिक यह जीवन धिक
अछूत जन्म लेकर मुझे
मर जाना ही ठीक॥
आज भी यह सवाल सरकार के सामने सुरसा की तरह मुँह खोले खड़ा है। अंत में, यह निश्चितता के साथ कह सकता हूँ कि इस अनुवाद के माध्यम से कवि हलधर जी के अंतरात्मा की आवाज़ देश के विपुल हिन्दी भाषी पाठकों के समक्ष पहुँचेगी और वे उसे पढ़ पाएँगे। मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि हिंदी जगत में यह अनुवाद अभूतपूर्व ख्याति प्राप्त करेगा।
डॉ. हलधर नाग के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए मैं सुदक्ष अनुवादक श्री दिनेश कुमार माली को इस महत्त्वपूर्ण कार्य के प्रतिपादन के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ।
डॉ. मुरारी लाल शर्मा
हिंदी प्राध्यापक (सेवानिवृत्त)
संबलपुर विश्वविद्यालय, संबलपुर (ओड़िशा)
विषय सूची
लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
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- अमेरिकन जीवन-शैली को खंगालती कहानियाँ
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की ‘विज्ञान-वार्ता’
- आधी दुनिया के सवाल : जवाब हैं किसके पास?
- कुछ स्मृतियाँ: डॉ. दिनेश्वर प्रसाद जी के साथ
- गिरीश पंकज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की यथार्थ गाथा
- डॉ. विमला भण्डारी का काव्य-संसार
- दुनिया की आधी आबादी को चुनौती देती हुई कविताएँ: प्रोफ़ेसर असीम रंजन पारही का कविता—संग्रह ‘पिताओं और पुत्रों की’
- धर्म के नाम पर ख़तरे में मानवता: ‘जेहादन एवम् अन्य कहानियाँ’
- प्रोफ़ेसर प्रभा पंत के बाल साहित्य से गुज़रते हुए . . .
- भारत और नीदरलैंड की लोक-कथाओं का तुलनात्मक विवेचन
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
- रेत समाधि : कथानक, भाषा-शिल्प एवं अनुवाद
- वृत्तीय विवेचन ‘अथर्वा’ का
- सात समुंदर पार से तोतों के गणतांत्रिक देश की पड़ताल
- सोद्देश्यपरक दीर्घ कहानियों के प्रमुख स्तम्भ: श्री हरिचरण प्रकाश
- अनूदित कहानी
- पुस्तक समीक्षा
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- उद्भ्रांत के पत्रों का संसार: ‘हम गवाह चिट्ठियों के उस सुनहरे दौर के’
- डॉ. आर.डी. सैनी का उपन्यास ‘प्रिय ओलिव’: जैव-मैत्री का अद्वितीय उदाहरण
- डॉ. आर.डी. सैनी के शैक्षिक-उपन्यास ‘किताब’ पर सम्यक दृष्टि
- नारी-विमर्श और नारी उद्यमिता के नए आयाम गढ़ता उपन्यास: ‘बेनज़ीर: दरिया किनारे का ख़्वाब’
- प्रवासी लेखक श्री सुमन कुमार घई के कहानी-संग्रह ‘वह लावारिस नहीं थी’ से गुज़रते हुए
- प्रोफ़ेसर नरेश भार्गव की ‘काक-दृष्टि’ पर एक दृष्टि
- वसुधैव कुटुंबकम् का नाद-घोष करती हुई कहानियाँ: प्रवासी कथाकार शैलजा सक्सेना का कहानी-संग्रह ‘लेबनान की वो रात और अन्य कहानियाँ’
- सपनें, कामुकता और पुरुषों के मनोविज्ञान की टोह लेता दिव्या माथुर का अद्यतन उपन्यास ‘तिलिस्म’
- बात-चीत
- ऐतिहासिक
- कार्यक्रम रिपोर्ट
- अनूदित कविता
- यात्रा-संस्मरण
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- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 2
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 3
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 4
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 5
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 1
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