हलधर नाग का काव्य संसार

हलधर नाग का काव्य संसार  (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)

हमारे गाँव का श्मशान-घाट

 

शाम ढलते ही सियार भूँकते, 
लकड़बग्घों की हुंकार, 
यह है हमारा गाँव का श्मशान-घाट। 
 
चारों तरफ़ आम की बगीची, 
उसमें उल्लू और जेईं चिड़िया, 
उनके घुग्घाने की आवाज़ 
इस पेड़ से उस पेड़ मँडराते 
दूसरे किनारे छायादार बरगद के नीचे, 
श्मशान-देवी का मंदिर 
यह है हमारे गाँव का श्मशान-घाट। 
 
देवी पेड़ों की शाखाओं पर कूदती, 
तेज़ आवाज़ से हुलहुली करती, 
सर-सर बालू-धूल उड़ाती, 
खर-खर ताड़ के पत्ते बजाती 
डोली झूलती, आग जलाती, 
जैसे अलाव का टीला 
यह है हमारे गाँव का श्मशान घाट। 
 
अमावस्या की रात चुड़ैल चलती 
ठोड़ी पर दीपक लिए 
पूरी नग्न, छितराए बाल
‘वीर वाहन’ की किए सवारी 
उल्टे पाँव, दाँतों में गन्ना, 
चौतरफ़ा रौंदती जाती 
यह है हमारे गाँव का श्मशान-घाट। 
 
एक भूतनी प्रसव-वेदना से चीखती 
उसके नवजात शिशु आग से खेलते 
उँगलियों जैसे बड़े नाख़ून
लोगों का पीछा करती मारने के लिए 
मशान के बाहर उसके बड़े भाई का भूत 
जो कुँवारे जवानी में मर गया
यह है हमारे गाँव श्मशान घाट। 
 
जिन्हें भूत लगे हैं, 
गुनिया कर रहे झाड़-फूँक 
ख़ून, कपट, काला जादू 
भेजता उन्हें श्मशान 
काली मुर्ग़ी की बलि से 
आत्माएँ होती शांत 
यह हैं हमारे गाँव का श्मशान घाट। 
 
श्मशान भूमि से लगता है डर, 
लेकिन यह हमारा असली घर 
यहाँ की कई लोग यात्रा कर चुके हैं, 
और बहुत सारे जाने को तैयार हैं
यहाँ हम सभी यात्रा करेंगे, 
अंत में यहाँ पर इकट्ठे होंगे 
यह है हमारे गाँव का श्मशान-घाट। 

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