हलधर नाग का काव्य संसार

हलधर नाग का काव्य संसार  (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)

श्री समेलई

 

 

समेलई वंदना


जुहार-जुहार, हे श्री समलई
संबलपुर वासिनी, 
जुहार-जुहार, हे श्री समलई
कमल-फूल आसिनी। 
 
मारनी-तारणी रक्षणी-भक्षणी
और तुम सदैव सहिष्णु हो
सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा, काली, 
और बगलामुखी आप ही हो। 
 
आप कलासी, मौली, मनगला, 
नरघटा और माहेश्वरी। 
बिराजी हो संबलपुर
बन रक्षा-धनुर्धर। 
 
जो जिस भाव से मानते तुम्हें देवी, 
उस रूप में होती सहाय
सर्वशक्तिमान, जगत-उद्धारक, 
हे देवी, दुनिया भर में आप कहलाय। 
 
आदि भगवती, अन्नपूर्णा
छप्पन करोड़ की माँ। 
जगदम्बा में आपका सिर ऊँचा, 
लपलपाती लंबी जिह्वा। 
 
सुशोभित मस्तक-मुकुट
हाथों में त्रिशूल-खंड। 
गर्वखंडिनी पताका धारणी
हे माँ समलई, प्रचंड। 
 
शक्ति नहीं लेखन की मुझमें, 
करने को महिमा-बखान। 
जल्दी-जल्दी सुना देता हूँ पद में
तुम्हीं हो वाग्देवी सर्वान। 
 
कवि गंगाधर ने किया था दर्शन
तुम्हारा रूप ज्योतिर्मान। 
कवि हलधर सुन रहे, हो मिय्रमान
तुम्हारी फुसफुसाहट अपने कान। 

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