हलधर नाग का काव्य संसार (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)
अभिमत
लोक कवि-रत्न श्री हलधर नाग न केवल पश्चिम ओड़िशा, वरन् संपूर्ण भारत के लिए गर्व और गौरव का विषय हैं। सामान्य जनजीवन के अनगिनत अलग-अलग प्रतिबिंब, उनके सुख-दुख, उनकी आस्था, विश्वास, परंपरा, धर्म-भावना, व्यक्तिगत चरित्र, सरल ग्राम्य जीवन-शैली की विस्तृत झाँकी से समृद्ध है उनका काव्य-संसार। ग्राम्य परिवेश से ओतप्रोत उनके काव्य-रस का आनंद अनन्य है। गाँव की मिट्टी से गहराई से जुड़े होने के कारण वे किसी भी सहृदय मनुष्य के अंतर में सहजता से प्रवेश करते हैं। कवि हलधर की विशेष प्रतिभा उनकी असाधारण मेधा-शक्ति है, उन्हें आज तक लिखी अपनी सारी कविताएँ कंठस्थ हैं, उनके अपने सभी दीर्घ महाकाव्य भी। किसी भी कवि सम्मेलन में काग़ज़ पकड़कर वे अपनी कविता का पाठ नहीं करते हैं। हज़ारों-हज़ारों श्रोताओं को बाँधकर रखते हुए, घंटों-घंटों तक लगातार अपनी कविताएँ सुनाने की उनमें अद्भुत शक्ति है, चाहे मिथकीय उर्मिला, अछिया, शिरी समलेई जैसे महाकाव्य हों या चाहे व्यंग्य पर आधारित आधुनिक क्रिकेट जगत पर उनकी कविताएँ। कविताओं की ख़ासियत यह भी है कि वे सभी न केवल छंदबद्ध हैं बल्कि प्रगीतधर्मी भी हैं। अंतर्वस्तु के अनुरूप कविता-पाठ के दौरान उनके चेहरे के हाव-भाव, हाथों की मुद्राएँ और उच्चारण में आरोहण-अवरोहण इतना प्रभावशाली है कि श्रोतागण दाँतों तले अंगुली दबाए बिना नहीं रह पाते। मेरा यह परम सौभाग्य है कि मुझे भी इस महान कवि के साथ अनेक बार साहित्यिक मंचों पर सहभागिता अदा करने का अवसर प्राप्त हुआ है, और कई बार श्रोता के रूप में उन्हें सुनने का भी।
पद्मश्री हलधर नाग की काव्य-कृति ‘काव्यांजलि-द्वितीय भाग’ का हिंदी में अनुवाद कर श्री दिनेश कुमार माली ने संबलपुरी कोसली भाषा की इस अमूल्य कृति को लक्ष्य भाषा हिंदी के विपुल पाठकों तक पहुँचाने का महत्त्वपूर्ण प्रयास किया है। वे एक अच्छे साहित्यिकार, दक्ष अनुवादक, आलोचक और कवि है। दीर्घावधि से ओड़िशा में अपने प्रवास के दौरान ओड़िया भाषा, साहित्य और संस्कृति से प्रभावित होकर अपनी मेहनत और लग्न के बल पर ओड़िया लिपि और भाषा सीखकर सुसमृद्ध ओड़िया साहित्य के विशाल महासागर में गोते लगाकर गहरे पानी से मोतियों की तलाश कर रहे हैं। प्रतिनिधि ओड़िया साहित्य का गहन अध्ययन कर आत्म-प्रेरणा से उनका अनुवाद कर विपुल पाठक वर्ग के समक्ष पहुँचाने का प्रयास भी कर रहे हैं। उनके द्वारा हिन्दी में अनूदित ओड़िया भाषा की अनेक उच्च कोटि की कहानियाँ, कविताएँ, उपन्यास और आलेख दूसरी भारतीय भाषाओं में अनूदित होकर अपने पाठक वर्ग को राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक बना रही है।
जब मुझे पता चला कि श्री माली कवि हलधर नाग की रचनाओं का अनुवाद कर रहे हैं तो मुझे वहुत आश्चर्य हुआ। ओड़िया भाषा तो उन्हें आती हैं, समझ में आता है, मगर संबलपुरी कोसली भाषा का ज्ञान उन्हें कैसे हुआ? बाद में याद आया कि उन्होंने पश्चिम ओड़िशा में काफ़ी समय व्यतीत किया है अपनी नौकरी के सिलसिले में। इसलिए वहाँ की जन भाषा की जानकारी होना सम्भव है। इसके अतिरिक्त, हलधर नाग की तरह उनकी भी स्मरण-शक्ति बहुत तेज़ है, इसलिए वे जो सीखना चाहते हैं, सीख पाते हैं—ऐसा मेरा अनुमान है। मेरी प्रथम भाषा संबलपुरी कोसली होने के कारण ‘काव्यांजलि’ का अनुवाद उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए दिया था ताकि मैं उसका मूल्यांकन कर सकूँ और अगर कोई त्रुटि रह गई हो तो उसका संशोधन भी। सही कहूँ तो मुझे उनका अनुवाद बहुत अच्छा लगा, अवश्य, पांडुलिपि में कुछ जगह संशोधन की आवश्यकता पड़ी। यह भी सत्य है, एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद करते मौलिक भाव ज्यों के त्यों तो नहीं आ पाएँगें, सांस्कृतिक पार्थक्य के कारण। वह भी एक लोक भाषा और विलुप्ति के कगार पर ग्राम्य-जीवन पर लिखी गई हलधर नाग की कविताएँ, जो अपने छंद-बद्धता और प्रगीतात्मकता के लिए विख्यात है। इस दृष्टि से हिंदी अनुवाद में थोड़ा अंतर है, मगर सामग्रिक तौर कवि हलधर नाग की काव्य-प्रतिभा, जीवन जिज्ञासा, दृढ़ पारंपरिक मूल्य-बोध और पौराणिक आख्यानों के सरस रूपान्तरण से अवश्य परिचित होंगे हिन्दी पाठक। सम्बलपुर के इतिहास, ऐहित्य, सम्बलपुर की अधिष्ठात्री देवी माँ संबलेश्वरी के अभ्युदय की कहानी महाकाव्य ‘शिरी समलेई’ बहुत आकर्षक है। ‘अछूत’ महाकाव्य में रामायण के मिथकीय पात्र शबरी का दृष्टांत देकर अत्यंत सुंदर तरीक़े से छूत-अछूत के भेदभाव को मिटाने के लिए लोगों को जागरूक किया है। श्री दिनेश कुमार माली का यह सरल सहज अनुवाद हिन्दी पाठकों को पसंद आएगा-ऐसी मेरी आशा है। निश्चय ही, यह अनुवाद संबलपुरी कोसली साहित्य के प्रसार की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। इस महत्त्वपूर्ण कार्य की सफलता के लिए अनुवादक को हार्दिक धन्यवाद एवं कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ।
शर्मिष्ठा साहू
प्रसिद्ध ओड़िया एवं संबलपुरी कवयित्री
विषय सूची
लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
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- अमेरिकन जीवन-शैली को खंगालती कहानियाँ
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की ‘विज्ञान-वार्ता’
- आधी दुनिया के सवाल : जवाब हैं किसके पास?
- कुछ स्मृतियाँ: डॉ. दिनेश्वर प्रसाद जी के साथ
- गिरीश पंकज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की यथार्थ गाथा
- डॉ. विमला भण्डारी का काव्य-संसार
- दुनिया की आधी आबादी को चुनौती देती हुई कविताएँ: प्रोफ़ेसर असीम रंजन पारही का कविता—संग्रह ‘पिताओं और पुत्रों की’
- धर्म के नाम पर ख़तरे में मानवता: ‘जेहादन एवम् अन्य कहानियाँ’
- प्रोफ़ेसर प्रभा पंत के बाल साहित्य से गुज़रते हुए . . .
- भारत और नीदरलैंड की लोक-कथाओं का तुलनात्मक विवेचन
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
- रेत समाधि : कथानक, भाषा-शिल्प एवं अनुवाद
- वृत्तीय विवेचन ‘अथर्वा’ का
- सात समुंदर पार से तोतों के गणतांत्रिक देश की पड़ताल
- सोद्देश्यपरक दीर्घ कहानियों के प्रमुख स्तम्भ: श्री हरिचरण प्रकाश
- अनूदित कहानी
- पुस्तक समीक्षा
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- उद्भ्रांत के पत्रों का संसार: ‘हम गवाह चिट्ठियों के उस सुनहरे दौर के’
- डॉ. आर.डी. सैनी का उपन्यास ‘प्रिय ओलिव’: जैव-मैत्री का अद्वितीय उदाहरण
- डॉ. आर.डी. सैनी के शैक्षिक-उपन्यास ‘किताब’ पर सम्यक दृष्टि
- नारी-विमर्श और नारी उद्यमिता के नए आयाम गढ़ता उपन्यास: ‘बेनज़ीर: दरिया किनारे का ख़्वाब’
- प्रवासी लेखक श्री सुमन कुमार घई के कहानी-संग्रह ‘वह लावारिस नहीं थी’ से गुज़रते हुए
- प्रोफ़ेसर नरेश भार्गव की ‘काक-दृष्टि’ पर एक दृष्टि
- वसुधैव कुटुंबकम् का नाद-घोष करती हुई कहानियाँ: प्रवासी कथाकार शैलजा सक्सेना का कहानी-संग्रह ‘लेबनान की वो रात और अन्य कहानियाँ’
- सपनें, कामुकता और पुरुषों के मनोविज्ञान की टोह लेता दिव्या माथुर का अद्यतन उपन्यास ‘तिलिस्म’
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- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 2
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- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 5
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