"ब्रेड ले लो... ब्रेड,"... आवाज़ सुनकर वे बच्ची के लिये ब्रेड लेने बाहर आये तो देखकर अवाक रह गये। ब्रेड बेचने वाला उनकी ही कक्षा का छात्र दीपेश था।

"दीपेश तुम..?"

"हाँ सर। घर में कमाने वाला कोई नहीं है। माँ और मैं हूँ। इसीलिये घर के खर्च के लिये यह ज़रूरी है," वह बोला।

"ठीक है। अच्छी बात है। परंतु पैदल?"  

"मेरे पास साइकिल नहीं है,सर। जो थी वह चोरी हो गई।"

"अरे! परंतु ऐसे में स्कूल आने में देर हो जायेगी, तब?"

"नहीं होगी, सर। मैं ब्रेड कितनों दिनों से बेच रहा हूँ। कभी स्कूल पहुँचने में देर नहीं हुई। आपको तो मालूम है। मैं नियमित और समय पर स्कूल आता हूँ।"

"हाँ, और न ही कभी तुमने पढ़ाई में शिकायत का मौक़ा दिया। हर कार्य समय पर पूरा करते हो। बहुत अच्छे...शाबाश! "

उसे दस रुपये देते हुये बोले, "एक दस रुपये वाला ब्रेड का पैकेट दे दो।"

दीपेश उन्हें पैकेट देकर बोला, "सर, रुपये रहने दीजिये।"

"नहीं... नहीं रुपये तो लेने पड़ेंगे और लेने भी चाहियें," वे बोले।

"ठीक है सर," दीपेश ने कहते हुये उनसे रुपये ले लिये।

"ज़रा रुकना बेटा, मैं अभी आया," कहते हुये वे भीतर गये और एक साईकिल खींचते हुये बाहर आये ।उसे दीपेश को देते हुये बोले, "मेरे पास एक साइकिल है,अच्छी हालत में है। मैं तुम्हारी मेहनत और लगन से बहुत ख़ुश हूँ। तुम, मेरी तरफ़ से इसे उपहार के रूप में ले लो; मुझे ख़ुशी होगी।"

दीपेश सकुचाया।

"कुछ नहीं सोचो। मैं तुम्हारा शिक्षक हूँ। तुम्हारी भलाई वाला ही काम करूँगा। ले जाओ। ख़ूब पढ़ो और अपने परिवार का ध्यान रखो। शाबाश!" उन्होंने समझाया तो दीपेश वह साईकिल लेकर ख़ुश होकर चला गया।

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