तन राधा, मन मोहन है।
हृदय हमारा वृन्दावन है॥
दीवानापन, पागलपन भी।
बेसुध, मदहोशी, तड़पन है॥
यमुना की रसधार चेतना।
दृग द्वय प्रेममयी चितवन है॥
रोम - रोम में लीलाएँ हैं।
हर धड़कन मधुर मिलन है॥
महके साँसों में नंदनवन।
और देवालय अंतर्मन है॥