रिक्त कैनवस पर
उभरते चेहरे
कभी बनते कभी बिगड़ते
ख़्वाबों को ताबीर दे जाते हैं।
तूलिका से खिंची
हर लकीर
कह जाती है
ढेरों अफ़साने
दिल की मर्ज़ी है
उसे ही रखे या
रुख़ मोड़ दे उसका।
तलाश है
उस रंग की
रुह की गहराइयों को
रंगकर
इक ने रंग की शक्ल
इख्तियार करे
तूलिका में ऐसे रंग भरे
कैनवस पर अनकहे
अफ़साने बयां हो जाएँ
आख़िर,
सामने तो लानी हैं
दिल में अंकुरित
चाहतों की
सजी सँवरी
गुलाबी लालियाँ
उनका स्वरूप
आज हुआ है
रंगों का मोहताज
कैनवस की गर्भ से
नवप्राण पा
आलोकित होने को
अपना शाश्वत सत्य
दर्शाने को......