वर्तमान में यह सुखद और शुभ संकेत है कि बच्चों के लिये ख़ूब और ख़ूबसूरती से न केवल लिखा जा रहा है बल्कि उनसे संबंधित हर विषय को लेकर कुछ न कुछ रोचक, ज्ञानवर्धक और मनोरंजक साहित्य उपलब्ध कराया जा रहा है। यह एक पहलू है।
दूसरा पहलू यह है कि हमें अपने लेखन में मनोवैज्ञानिक रूप से भी सजग रहना आवश्यक है कि हम जो बच्चों को रचना देने जा रहे हैं वह उनके मन-मस्तिष्क और दिल को कितना सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी?
हमें इसके लिये न केवल सजग रहना होगा बल्कि गंभीर भी बनना होगा। हमें उदारवादी, संकोची स्वभाव से बचते हुये धैर्य और दृढ़ता का पक्ष मज़बूत करना होगा। ऐसा करना हमारे लेखन के लिये बहुत ही अहम है। हमारे लेखन में हमें विषय-भाव प्रस्तुति के लिये शब्द चयन का भी ध्यान रखना है। आजकल बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त शब्दों को रचना में सीधे-सीधे उपयोग में लिया जा रहा है, यह न ठीक है, न उचित। हम भी वही करने लगेंगे तो फिर सही कौन करेगा?
अस्तु - आज पटल पर बात रखने का अवसर मिला तो प्रयास और साहस किया है। कमियाँ और असहमति हो सकती हैं। क्षमा करें।