अथ स्वरुचिभोज प्लेट व्यथा
नरेंद्र श्रीवास्तवसलाद,
दही बड़े,
रसगुल्ले,
जलेबी,
पकौड़े,
रायता,
मटर-पनीर,
दाल,
चावल,
रोटी,
पूरी
के बाद
ज्योंही मैंने
प्लेट में पापड़ रखा
प्लेट से रहा न गया
और बोली
अब बस भी करो
धैर्य रखो
थोड़ा सुस्ता लो
पहले इतना तो खा लो
घर में तो
एक गिलास पानी के लिये
पत्नी को आवाज़ लगाते हो
यहाँ इतनी प्लेट भर के भी
फ़ुरती दिखाते हो
फिर मन ही मन बड़बड़ाई
क्या ज़माना है
तुम तो खा पी के चले जाओगे
मुझे तो धो-पुछ के फिर आना है
सौ रुपये में
मेरी जान लोगे
अभी तुम्हारे पेट से बोलती हूँ
सुबह तक सब जान लोगे।
2 टिप्पणियाँ
-
बेहतरीन कलेक्शन..
-
क्या बात है.... धो कर रख दिया
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