यह कैसो मधुमास
सुषमा दीक्षित शुक्लासुनु आया मधुमास सखि, लगा हृदय बिच बाण।
सिर्फ़ देह है सखि यहाँ, प्रियतम ढिंग है प्राण॥
किसके हित सँवरूँ सखी, किस पर करूँ सिंगार।
बाट निहारूँ रात दिन, पिय नहिं सुनत पुकार॥
ऋतु बासन्ती सुरमई, पिया मिलन का दौर।
पियरी सरसों खेत में, बगियन में हैं बौर॥
यह कैसो मधुमास सखि, जियरा चैन न पाय।
नैनन से आँसू झरत, उर बहुतहि अकुलाय।
पिय कबहूँ तो आयँगे, वापस घर की राह।
बाट निहारूँ दिवस निसि, उर धरि चाह उछाह॥
सबके प्रियतम संग हैं, मोरे हैं परदेस।
जियरा तड़पत रात दिन, यही हिया में क्लेष॥
मन मेरो पिय संग है, भावे नहिं घर-ठौर।
वह दिन सखि कब आइहैं पिय बनिहैं जब मौर।
रात दिवस नित रटत हूँ, मैं उनही को नाम।
वो ही मेरे चैन-सुख, वो ही चारों धाम॥
डर लागत है सुनु सखी, पिय भूले तो नाह।
हम ही उनकी प्रेयसी, हम ही उनकी चाह॥
ऋतु बासंती सुनु ठहर, जब लौं पिया न होय।
कोयल पपिहा से कह्ये, शोर करै नहिं कोय॥