सिंघिनी

01-11-2021

सिंघिनी

सुषमा दीक्षित शुक्ला  (अंक: 192, नवम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

स्वर्ण  की ज़ंजीर बाँधे,
श्वान फिर भी श्वान है।
 
धूल धूसरित सिंहिनी,
पाती  सदा सम्मान है। 
 
आत्मनिर्भर स्वाभिमानी,
शौर्य ही  पहचान है।
 
हार  ना स्वीकारती,
जाती भले ही जान है।
 
मान ख़ातिर प्राण देती,
सहती न  वह अपमान है।
 
वीरता ही धर्म उसका,
शौर्य ही ईमान है।
 
शत्रु भय से वह कभी,
होती नहीं  हैरान है।
 
परिभाषा उसी से शौर्य की,
सच सिंघिनी महान है।

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