ऐ! कविता
सुषमा दीक्षित शुक्ला
ऐ! कविता शायद तू मेरी सहेली है
तू प्यारी सी कोई पहेली है।
नीरसता में रस भर देती,
तू अलबेली है सच अलबेली है।
ऐ! कविता शायद तू मेरी सहेली है।
तू अलबेली है सच तो अलबेली है।
जब जब मन बोझिल होता है।
मेरा मन छुपके रोता है।
जब पथ ही काँटे बोता है।
ऐसा लगता कुछ खोता है।
तब कहती तुम मुझसे देखो,
सुषमा तू तो नहीं अकेली है।
भाव शब्द सुर संगम लाती
कविता सदा नवेली है।
ऐ! कविता शायद तू मेरी सहेली है।
तू अलबेली है सच तू अलबेली है।
तू अतीत के पन्ने खोले।
तू भविष्य के सपने तोले।
विष समेटकर अमृत घोले।
मन मयूर कविता संग डोले।
मन भावों के पुष्प खिलाती,
रचना रास रसीली है।
प्यारी बचपन की सखि जैसी,
छैल छबीली है तू रँगीली है।
ऐ! कविता शायद तू मेरी सहेली है।
तू अलबेली है सच तू अलबेली है।
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