ऐ! बसन्त
सुषमा दीक्षित शुक्लाजाने पहचाने से लगते हो,
ऐ! स्वर्णिम सुंदर प्रिय बसन्त।
पाषाण युगों से आज तलक,
देखे हैं तुमने युग युगांत।
तुम परिवर्तन के साधक हो,
पतझड़ में लाते बहार।
है कायाकल्प बना तुमसे,
तुम जीवन के कर्णधार।
तुम परिणय हो कौमार्य तुम्हीं,
तुम प्रेमी हो सौंदर्य तुम्हीं।
तुम तृष्णा हो तो धैर्य तुम्हीं,
वीरों के उर का शौर्य तुम्हीं।
तुम धानी रंग की चूनर हो,
तुम मधुर मिलन शहनाई हो।
सरसों की पीली चादर तुम,
तुम यौवन की अँगड़ाई हो।
होंठो की हँसी बना करते,
तुम काम दूत तुम भोगी हो।
आँसू भी बन जाते तुम,
तुम वैरागी तुम योगी हो।
होली की आहट लाते हो,
हे! प्रेमदेव हे! प्रिय बसन्त।
अलि तरंग बन जाते हो,
है छटा बिखेरी दिग् दिगन्त।
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