नव संवत्सर

01-04-2022

नव संवत्सर

सुषमा दीक्षित शुक्ला  (अंक: 202, अप्रैल प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

नव संवत की बेला आयी। 
कलियों ने ओढ़ी तरुणाई। 
 
श्वासों की शाखों पर देखो, 
सुंदर पुष्प गुलाब खिले हैं। 
मादकता मधुबन में फैली, 
नयनों में महताब जले हैं। 
 
ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हैं छाई। 
नव सम्वत की बेला आई। 
कलियों ने ओढ़ी तरुणाई। 
नव सम्वत की बेला आयी। 
 
ख़ुश्बू घुली फ़िज़ाओं में है, 
फ़सलें रँग रँगीली हैं। 
मधुर मास है छलका छलका, 
कलियाँ हुई नशीली हैं। 
 
ग्रीष्म ऋतु की आहट लायी। 
नव सम्तव की बेला आयी। 
कलियों ने ओढ़ी तरुणाई। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
किशोर साहित्य कविता
स्मृति लेख
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य कविता
दोहे
कविता-मुक्तक
गीत-नवगीत
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में