कहीं फ़र्श तो कहीं रँगे मन
सुषमा दीक्षित शुक्लाहोली की वो मधुमय बेला,
बीत गयी कुछ छोड़ निशानी।
गली मोहल्ले रंग रंग है,
रंग हुआ नाली का पानी।
दीवारों पर रंग जमा है,
चेहरों पर भी रंग रवानी।
कहीं फ़र्श तो कहीं रंगे मन,
अलग अलग कर रहे बयानी।
होली तो हे मीत यही बस,
याद दिलाने आती है।
नफ़रत तोड़ो प्यार निभाओ,
दुनिया किसकी थाती है।
होली का मंगलमय उत्सव,
मीत तभी साकार बनेगा।
नफ़रत के दुर्भाव त्याग जब,
प्रेमरंग संसार दिखेगा।
वैसे तो होली के रंग में,
सभी लोग रँग जाते हैं।
पर होली का अर्थ यही है,
चलो सभी अपनाते हैं।
प्रेमरंग में रँगे कृष्ण थे,
राधा रानी के जैसे।
सच्चे रंग न धूमिल पड़ते,
इंद्रधनुष के रंग जैसे।
होली के गर सही अर्थ को,
लोग सभी अपना लेंगे।
कुत्सित मन की दुर्बलता को,
पल में दूर भगा देंगे।
होली की वो मधुमय बेला,
बीत गयी कुछ छोड़ निशानी।
गली मोहल्ले रंग रंग है,
रंगा हुआ नाली का पानी।
-सुषमा दीक्षित शुक्ला
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