तुम और अपना गाँव
सुषमा दीक्षित शुक्लाकमला चाची दरवाजे पर टकटकी लगाए आज सुबह से अपने परदेसी बेटे जीवन की अनवरत प्रतीक्षा कर रही थीं, होली का दिन जो आ गया था। मगर बेरोज़गारी व ग़रीबी के दंश से उबरने के लिए अपनी प्यारी विधवा माँ को बेसहारा छोड़ कमाई करने के लिए परदेस गया था उनका इकलौता बेटा जीवन।
बेरोज़गारी के डंक ने जीवन को काम की तलाश में अपने प्यारे गाँव शांतिपुर के सुकून से दूर चकाचौंध भरे शहर की ओर जाने को मजबूर कर दिया था।
होली का दिन आ गया था मगर अभी तक जीवन वापस अपने गाँव नहीं आ सका था, जिसकी अनवरत प्रतीक्षा में एक-एक क्षण बुढ़ापे की ओर तेज़ी से बढ़ रही बेचारी विधवा माँ ने तिनका-तिनका जोड़ कर होली पर बेटे के आगमन की संभावना से सोंठ गुड़ की गुझिया व उसके पसंद के होले भून कर रखे थे। कमला चाची ने ख़ुशी के मारे उस दिन भोजन भी नहीं किया कि प्यारे बेटे को अपने हाथ से खिला कर ही खाऊँगी।
मगर यह क्या . . . होली धू-धू कर जल चुकी थी . . . इंतज़ार में सुबह हो गई। गाँव के गलियारों में बच्चे रंग खेल रहे थे, लोग-लुगाई हुड़दंग कर रहे थे। गाँव की गोरियाँ टोलियाँ बनाकर होली गीत गा रहीं थीं। मगर इस बेचारी माँ का दिल सूनेपन से घिरा था . . .
उनकी आँखों का तारा उनका इकलौता लाल जो अब तक घर नहीं पहुँचा था।
कमला चाची को कुछ घबराहट सी हो रही थी, कई प्रकार की अशुभ कल्पनाएँ उनकी रूह कंपा सी रहीं थीं कि बेटा किसी मुसीबत में तो नहीं है, कहीं माँ को भूल तो नहीं गया परदेस में किसी से ब्याह रचा कर या शहर की चकाचौंध देखकर . . .। ये सब सोचकर उनके मन में घबराहट अनायास ही होने लगती; वह ईश्वर को पुकार रही थी।
अचानक पीछे से किसी ने कमला चाची के आँखों पर रंग लगे अपने हाथ ढक लिए।
माँ अपने बच्चे का स्पर्श हर हाल में पहचानती ही है चाहे वह अपनी याददाश्त भी क्यों ना खो चुकी हो . . . फिर देखा सामने उसका जीवन वापस आ गया था। वह अपने हाथों में घर के कई सामान, माँ के लिए साड़ी, खाना पकाने के लिए कुकर आदि लेकर अपने गाँव वापस लौटा था। अपनी प्यारी माँ के पास . . . अपने गाँव के उसी बरगद की छाँव में जहाँ वह पल कर बड़ा हुआ था।
शहर की घनी आबादी से दूर सुकून का जीवन जीने फिर से वापस आ गया था जीवन . . . और माँ से बोला, "अब माँ अपने गाँव में ही रोजगार कर लूँगा, तुम्हारे पास रहकर, तुम और अपना गाँव बहुत प्यारे लगते हैं मुझे!"
1 टिप्पणियाँ
-
बहुत बढ़िया
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अग्नि
- अब ना सखी मोहे सावन सुहाए
- अभिव्यक्ति के अविराम
- अमर शहीद
- आशादीप
- आख़िर सजन के पास जाना
- आज़ाद चन्द्र शेखर महान
- इतिहास रचो ऐ! सृजनकार
- ऐ मातृ शक्ति अब जाग जाग
- ऐ! कविता
- ऐ! बसन्त
- ऐ! सावन
- कन्या भ्रूण हत्या
- कहीं फ़र्श तो कहीं रँगे मन
- कान्हा
- कोरोना से दिवंगतों को श्रद्धांजलि
- गङ्गे मइया
- गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी
- छत्रपति शिवाजी
- जय महाकाली
- जय श्री राम
- जल के कितने रूप
- जाने जीवन किस ओर चला
- जीवन और साहित्य
- तुम बिन कौन उबारे
- तू बिखर गयी जीवनधारा
- दोस्ती
- नव वर्ष
- नव संवत्सर
- नवल वर्ष के आँगन पर
- परी लगे भैया को बहना
- पवन बसन्ती
- प्रभात की सविता
- बरसात
- बैरी सावन
- भावना के पुष्प
- मर्यादा पुरुषोत्तम
- माँ
- माता-पिता की चरण सेवा
- मेरा गाँव
- मैं एक पत्रकार हूँ
- यह कैसो मधुमास
- ये जो मेरा वतन है
- ये मातृ भूमि का वन्दन है
- रोम रोम में शिव हैं जिनके
- लक्ष्मी बाई
- वीरों का ले अरि से हिसाब
- शिक्षक प्रणेता राष्ट्र का
- शिक्षक ही पंख लगाते हैं
- सच्चा श्राद्ध
- सरस्वती वंदना
- सावन पर भी यौवन
- सिंघिनी
- सुभाष चन्द्र बोस
- हाँ मैं श्रमिक हूँ
- हिंदुस्तान के रहने वालो
- हुई अमर ये प्रेम कहानी
- हे गणेश!
- हे! सूर्यदेव
- क़ुदरत की चिट्ठी
- ख़ाकी
- किशोर साहित्य कविता
- स्मृति लेख
- लघुकथा
- हास्य-व्यंग्य कविता
- दोहे
- कविता-मुक्तक
- गीत-नवगीत
- विडियो
-
- ऑडियो
-